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________________ २१६ | सद्धा परम दुल्लहा का कर्ता है, (४) उनके फल का भोक्ता है, (५) समस्त कर्मक्षय होने से पूर्ण शुद्धरूप आत्मा का मोक्ष भी है, और (६) मोक्ष के उपाय (सद्धर्माचरण, संवर, निर्जरा, तप आदि) भी हैं। आत्मवाद का प्रारम्भ आत्मा से होता है, और अन्त मोक्ष से। विभिन्न प्रमाणों से आत्मा के अस्तित्व की सिद्धि आत्मा का अस्तित्व आगम, अनुमान, स्वानुभव, आदि प्रमाणों से सिद्ध है । भ० महावीर ने आचारांगसूत्र में आत्मा के अस्तित्व को प्रमाणित करने के लिए कहा ___ "अनेक व्यक्ति यह नहीं जानते कि मैं कहाँ से आया हूँ ? मैं कौन है ? यहाँ से मरकर पुनः कहाँ जाऊँगा?'' "जिसको यह ज्ञात हो जाता है कि मेरी आत्मा औपपातिक है--- विभिन्न गतियों से आई है। जो इन (विभिन्न) दिशाओं या अनुदिशाओं में कर्मानुसार संचरण करता है । सभी दिशाओं या अनुदिशाओं से जो आया है और अनुसंचरण करता है, वही मैं (आत्मा) हूँ ।' इस प्रकार आत्मा का अस्तित्व आगम-प्रमाण से सिद्ध होता आत्मा को अन्य प्रमाणों से सिद्धि वह तो हुई आगम-प्रमाण से आत्मा की सिद्धि । आत्मा शब्द, रूप, रस, गन्ध और स्पर्श से रहित होने से इन्द्रियग्राह्य (इन्द्रिय-प्रत्यक्ष) नहीं है, इसलिए वह अमूर्त (अरूपी) है, इससे उसके अस्तित्व पर कोई आँच नहीं आती । संसार में बहुत-से सूक्ष्म पदार्थ ऐसे हैं, १. आत्मसिद्धि शास्त्र । २ 'एवमेगेसि णो णायं भवइ---अस्थि मे आया ओववाइए णत्थि मे आया ओववाइए, के अहं आसी ? केवा इओ चुओ, इह पेच्चा भविस्सामि ?' -आयारो १/१/३ ३. एवमेगेसि ज णायं भवइ ---अत्थि मे आया ओववाइए। जो इमाओ दिसाओ अणुदिसाओ वा अणुसंचरइ, सव्वाओ दिसाओ, सव्वाओ अणुदिसाओ वा जो आगओ-अणुसंचरइ, सो हं। -आयारो १/१/४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003188
Book TitleSaddha Param Dullaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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