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सुश्रद्धा की उपलब्धि का व्याकरण
सुश्रद्धा की उपलब्धि सम्भव है अनन्त आकाश में प्रकाशमान स्वच्छ, सौम्य और निर्मल चन्द्रमा कितना रमणीय और आकर्षक लगता है ? उसका प्रकाश भी कितना शीतल सौम्य और मनोरम लगता है ? परन्तु इस प्रकार के शीतल सौम्य एवं लोकप्रिय चन्द्रमा को कोई पकड़ कर अपने घर में रखना चाहे तो कथमपि सम्भव नहीं है । चन्द्रमा को इस प्रकार उपलब्ध करना प्रायः असम्भव है। किसी भी पदार्थ का सन्दर रुचिकर सौम्य एवं प्रकाशकर होना या लगना एक बात है और उसे उपलब्ध या प्राप्त करना अलग बात है। लाख प्रयत्न करने पर भी चन्द्रमा को हाथों से पकड़ना और उसे घर में रख लेना सम्भक नहीं है।
परन्तु अध्यात्म-गगन में प्रकाशमान, स्वच्छ, निर्मल सम्यग्दष्टि (सुश्रद्धा) अध्यात्म-विकास के इच्छुक व्यक्ति को जैसे प्रिय और रुचिकर लगती है, वैसे ही उसकी उपलब्धि भी सम्भव है। कलानिधि चन्द्रमा को पकड़ने के समान सम्यग्दृष्टि या सुश्रद्धा का उपलब्ध करना असम्भव नहीं है। उसे आत्मारूपी गृह में ले आना भी चन्द्र की तरह असम्भव नहीं है ।
तात्पर्य यह है, कि चन्द्रमा को प्रिय और रुचिकर देखकर कोई उसे सहस्रों वर्षों के पश्चात् भी उपलब्ध करना चाहे तो नहीं कर सकता, वैसा सुश्रद्धा (सम्यग्दृष्टि) की प्राप्ति या उपलब्धि के सम्बन्ध में नहीं है । सुश्रद्धा की उपलब्धि या प्राप्ति का उपाय कठिनतम हो सकता है, किन्तु वह कोई बाह्य-आत्मबाह्य पदार्थ नहीं है, वह आत्मा का ही निज गुण है। आत्मा
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