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१८६ | सद्धा परम दुल्लहा
__ संवेग के कारण प्राप्त विशुद्ध दर्शन की आराधना करने वाले को कोई भी व्यक्ति धर्म श्रद्धा से विचलित नहीं कर सकता, कोई कितना ही कष्ट पहुंचाए, वह धर्म से कदापि विचलित नहीं होता। स्कन्धक, अर्जुनमुनि, गजसुकुमाल आदि अनेक दृढ़धर्मी श्रमणों और कामदेव आदि श्रावकों के उदाहरण शास्त्रों में अंकित हैं।
कामदेव श्रावक पर एक पिशाचरूपधारी देव कुपित हुआ और धर्म से डिगाने के लिए अनेक कटुवचन कहे, भय दिखाया और उसे मार डालने को उद्यत हो गया, मगर कामदेव श्रावकधर्म पर दृढ़ और कष्ट सहिष्णु बना रहा इतना ही नहीं दृढ़धर्मी कामदेव श्रावक ने देव को भी पिशाच से पुनः देव वना दिया।
इस प्रकार धर्म पर दृढ़ श्रद्धा रखने और दर्शन की विशुद्ध आराधना करने से आत्मा उसी भव में सिद्ध-बुद्ध-मुक्त हो जाता है। यही संवेग का सर्वश्रेष्ठ अन्तिम फल है।
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