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________________ १४ | सद्धा परम दुल्लहा अनन्त ज्ञान शक्ति पर उसे प्रतीति हो गई । फलतः 'मा रुष मा तुष' सूत्र के द्वारा गरु ने तो बताया था कि संसार के किसी भी इष्ट-अनिष्ट पदार्थ के प्रति राग-द्वष मत करो। इससे तुम्हारी आत्मा शुद्ध, पवित्र, निर्मल हो जाएगी, जिससे तुम्हारा ज्ञान-दर्शन-चारित्र भी पूर्णतः अनावत हो जाएगा। पर इस सूत्र एवं अर्थ को भूल जाने पर आत्मलक्ष्यी श्रद्धा के बल पर माष तष शब्द के अर्थ का चिन्तन करता रहा । सोचा-जैसे उडद और उसका छिलका भिन्न है, वैसे ही मेरी आत्मा और शरीर भिन्न है। काले छिलके के दूर होते ही जैसे अन्दर से श्वेत उड़द निकलता है। वैसे ही शरीर और शरीर से सम्बन्धित पदार्थों के प्रति होने वाले राग-द्वषादि काले विकारों के आत्मा से दूर होते ही मेरा आत्मा शुद्ध निर्मल रूप में प्रकट हो जाएगा। यों उस सूत्र का शब्द से गलत, किन्तु अर्थ से यथार्थ, पूनः-पून चिन्तन, मनन तथा भावात्मक ध्यान करने से उस शिप्य की आत्मा में आवृत ज्ञान, राग-द्वषादि मालिन्य दूर होते ही सम्यक् हो गया। उक्त मन्दबुद्धि शिष्य को केवलज्ञान-केवलदर्शन का परम आलोक प्राप्त हो गया। यह था-आत्मनिष्ठ आत्मलक्ष्यी सम्यक् श्रद्धा का प्रभाव, जिसने ज्ञान पर आए हुए आवरण को सर्वथा मिटा कर केवलज्ञान का महा प्रकाश प्रकट कर दिया। सम्यक् श्रद्धा की परख सम्यक् श्रद्धा के लिए इस प्रकार की दृढ़ निष्ठा प्रतीति या लगन अनिवार्य है। बहुत-से लोगों को पदार्थ ज्ञान तो बहुत होता है, किन्तु अंतर से उस पर पक्की श्रद्धा नहीं होती, बनावटी या औपचारिक श्रद्धा सम्यक् श्रद्धा का स्थान नहीं ले सकती । इसीलिए उत्तराध्ययन सूत्र में कहा गया 'भावेण सद्दहंतस्स सम्मत्तं तं वियाहियं ।' भाव से-अन्तःकरण से जो निश्चय पूर्वक श्रद्धा करता है, उसी की श्रद्धा को सम्यक् श्रद्धा (सम्यक्त्व) कहा गया है। सम्यक् श्रद्धा का स्वरूप अगर ऐसा न होता तो जो प्रखर-बुद्धि वाला व्यक्ति शास्त्र या ग्रन्थ पढ़ सुन कर जिनोक्त तत्व-भूत नौ या सात पदार्थों के नाम, भेद-प्रभेद, अर्थ-लक्षण या परिभाषाएँ रट-रटा कर कण्ठस्थ कर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003188
Book TitleSaddha Param Dullaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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