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________________ १७० । सद्धा परम दुल्लहा सम ही जीवन का मूलमंत्र श्रमण संस्कृति का मूल शब्द 'समण' है, तदनुसार उसका तीसरा अर्थ 'समन' होता है अर्थात् सर्वत्र समभाव में प्रवृत्त करने वाली संस्कृति । भगवान् महावीर के लिए शास्त्रों में यत्र-तत्र 'समणे' विशेषण प्रयुक्त किया गया है । इसका फलितार्थ यह है कि श्रमण संस्कृति का उपासक सम्यग्दृष्टि होता है, वह सभी परिस्थितियों में समदृष्टि, समत्व का उपासक, प्राणिमात्र को अपने समान समझने वाला, सबके हित “ख का व्यवहार करने वाला, संयोग-वियोग, सुख दुःख, भवन-वन, शत्रु-मित्र आदि के प्रति समभावी होता है । समत्व उसके जीवन का मूलमंत्र होता है। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में वह विषमताओं से दूर रहकर समभाव में स्थिर रहता है । १ "दुःखे सुखे वैरिणि बन्धुवर्ग, योगे-वियोगे भवने वने वा। निराकृताशेष ममत्व बुद्धः समं मनो मेऽस्तु सदाऽपि नाथ ॥" __--सामायिक पाठ, श्लो० ३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003188
Book TitleSaddha Param Dullaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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