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'शम' का द्वितीय रूप-शम | १५६
राग और अनिष्ट विषयों के प्रति तीव्र द्वेष करता रहेगा, जो शमगुण के नाशक हैं । अतः जिनमें विषय भोगों की तीव्रता होगी, उनका उपशमन नहीं होगा, वह सम्यग्दर्शन से कोसों दूर है, यह समझ लेना चाहिए । इस प्रकार क्रोध से लेकर विषयभोगों की तीव्रता तक के दुर्गुण शम या शान्ति के बाधक कारण हैं।
इस प्रकार शम गुण सम्यक्त्व या सम्यग्दर्शन का परिचायक है। इस पर से व्यक्ति को परखा जा सकता है कि वह श्रमण संस्कृति के एवं सम्यक्त्व के प्रथम चिन्ह-'शम' से सम्पन्न है तो सम्यग्दृष्टि है, अथवा इस गुण से रहित है तो वह सम्यगदृष्टि नहीं है ।
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