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१५८ | सद्धा परम दुल्लहा पनपती हैं। इसीलिए कहा गया है, जब तक तीव्र लोभ, तीव्र माया का शमन नहीं होता, तब तक व्यक्ति में सम्यग्दर्शन प्रकट नहीं होता। सम्यग्दर्शन की परख के लिए तीव्र मोह, ममत्व, लोभ, माया, तीव्र राग आदि कषाय की उपशान्तता अवश्य देखी जाती है । तीव्र राग, लोभ, तीव्र मोह, ममत्व आदि जिसमें हों, उस व्यक्ति की दृष्टि संसारलक्ष्यी होती है आत्मलक्ष्यी नहीं, वह उनके रहते सम्यक्त्व प्राप्त नहीं कर पाता, अतः अशुभ कर्मबन्ध के कारण चिरकाल तक संसार परिभ्रमण करता है। माया कषाय के कारण बारबार उसे विविध तिर्यञ्च योनियों में जन्म लेना पड़ता है। इसीलिए लोभ, कषाय के इस परिवार की तीव्रता सम्यक्त्व प्राप्ति में बाधक है।
द्वेष, घृणा, वैर-विरोध आदि की तीव्रता-जब व्यक्ति में दूसरे के प्रति तीव्र द्वष, घणा, वैर-विरोध आदि हो जाता है, तो वह ईर्ष्या, हिंसा, झठ आदि अनेक दुर्गुणों का घर बन जाता है । द्वेष के कारण वह बार-बार बदला लेने की ठानता है, इससे वर परम्परा दीर्घकाल तक चलती है, जन्ममरण का चक्र चलता रहता है, वह आत्मभान मूल जाता है। विश्वयुद्ध, नरसंहार, हत्याकाण्ड, रक्तपात आदि भयानक कुकृत्य तीव्र द्वष के ही परिणाम हैं । जिस व्यक्ति में द्वष आदि दुर्गुणों की तीव्रता होती है, वह अनन्त काल तक संसार परिभ्रमण करता है, बार-बार दुर्गति में जाता है वहाँ नाना यातनाएँ, दुःख एवं कष्ट भोगता है, उसे बोधिलाभ प्राप्त होना बहुत दुर्लभ है। इसीलिए कहा गया है कि जिसमें तीव्र द्वष आदि हों, जानना चाहिए कि अभी तक उसे सम्यक्त्व प्राप्त नहीं हुआ है। तीव्र द्वष आदि का शमन जिसमें हो गया हो, समझना चाहिए उसमें सम्यग्दर्शन है । जिसमें तीव्र द्वष आदि शान्त हो गए होंगे, वह व्यक्ति किसी से वैर-विरोध करेगा नहीं, कदाचित् किसी कारणवश उसे किसी के धर्मविरुद्ध, न्याय-नीतिविरुद्ध गलत कार्यों का विरोध भी करना पड़े, न्याय या दण्ड भी देना पड़े तो वह पक्षपात, मोह, ममत्व नहीं करेगा। वह केवल कर्त्तव्य पालन करेगा। उसके चेहरे पर शान्ति, गम्भीरता, प्रसन्नता, तेजस्विता एवं विरोधी के प्रति भी आत्मीयता होगी।
विषय-भोगों की तीव्रता -यह भी सम्यग्दर्शन प्राप्ति में बाधक है। जिसमें विषय वासना तो होगी, वह व्यक्ति आत्महित की उपेक्षा करके अहर्निश अपने मनोज्ञ विषयों को प्राप्त करने के प्लान रचता रहेगा। वह आर्तध्यान और रौद्रध्यान के चक्कर में पड़ा रहेगा। ऐसी स्थिति में वह शरीर और शरीर से सम्बन्धित सजीव-निर्जीव इष्ट विषयों के प्रति तीव्र
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