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१४८ | सद्धा परम दुल्लहा
उनका भाग्य चमक उठा। भाग्य के निर्माता वे स्वयं बने अपने पुरुषार्थ के बल पर।
इसी प्रकार एकान्त नियतिवाद भवितव्यता या होनहारवाद को भी सम्यग्दष्टि नहीं मानता। वह नियतिवाद के चक्कर में पड़कर सत्पुरुषार्थ (श्रम) को नहीं छोड़ता। वह पुरुषार्थ का ही प्राबल्य मानता है ।
'सम्यग्दष्टि की वास्तविक पहचान यही है कि वह भाग्यवाद या एकान्त नियतिवाद के चक्कर में नहीं पड़ता। वह श्रमणसंस्कृतिमूलक श्रम को प्रधानता देता है। अपने आध्यात्मिक श्रम के द्वारा आत्मा के निजी गुणों की सम्पत्ति प्राप्त कर लेता है। इसीलिए श्रम को सम्यग्दष्टि का प्रथम चिह्न और श्रमण संस्कृति का प्रथम मूलमंत्र माना है ।
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