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सम्यग्श्रद्धा के आधारभूत लक्षणों के सन्दर्भ में
'शम' का द्वितीय रूप-शम
'शम' का द्वितीय रूप-शम सम्यग्दर्शन या सम्यक्त्व मोक्ष का मुख्य द्वार है। सम्यग्दर्शन होने पर ही ज्ञान और चारित्र सम्यक होते हैं। अगर किसी व्यक्ति में सम्यग्दर्शन न हो तो वह चाहे जितना पढ़ा-लिखा हो, चाहे वह शब्दशास्त्र में पारंगत हो, छहों दर्शनों का प्रकाण्ड विद्वान हो, अनेक भाषाओं का ज्ञाता हो, अच्छा से अच्छा लच्छेदार प्रवचन और भाषण कर सकता हो, संभाषण कला एवं लेखन कला में प्रवीण हो, अथवा शास्त्रों की व्याख्या करने में सिद्धहस्त हो, विज्ञान की विविध शाखाओं का स्नातक हो, अगर उसमें सम्यग्दर्शन नहीं है तो उसका ज्ञान सम्यग्ज्ञान नहीं हो सकता। ऐसी स्थिति में उसकी दृष्टि किसी न किसी स्वार्थ या लोभ से प्रेरित होगी, उसके मन में अपने ज्ञान विज्ञान का अहंकार, प्रसिद्धि और प्रशंसा का लोभ, सत्य और यथार्थ बात कहने में भय, संकोच एवं दबाब होगा, वह माया-कपटपूर्वक ठकुरसहाती बात कहेगा, किसी न किसी आशा और आकांक्षा के वशीभूत होकर वह शास्त्रों की व्याख्या भी तदनुकूल करेगा । उसकी दृष्टि संसारलक्ष्यी होगी, मोक्षलक्ष्यी नहीं। वह लम्बी-लम्बी तपस्याएँ भी करेगा, व्रत, नियम एवं क्रियाओं का पालन भी करेगा। परन्तु उसकी दृष्टि सम्यक् न होने से या तो वह किसी प्रलोभन, स्वार्थ, लाभ, पद, प्रतिष्ठा, प्रसिद्धि, वाहवाही आदि से या फिर स्वर्गादि सुखों की लिप्सा, अथवा अन्य किसी भी भोगेच्छा से प्रेरित होकर ज्ञान प्राप्त करेगा, या चारित्र का पालन करेगा। ऐसी स्थिति में सम्यग्दर्शन के अभाव में उसका वह ज्ञान सम्यग्ज्ञान नहीं होगा, और न
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