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'शम' और उसका स्वरूप | १४१
श्रम तो करते ही हैं, परन्तु उनके श्रम के पीछे प्रायः हिताहित, पुण्य-पाप, धर्म-अधर्म या कर्तव्य - अकर्तव्य का कोई विवेक नहीं होता । इसीलिए भगवान् महावीर ने सम्यग्दृष्टि सम्पन्न व्यक्तियों के लिए श्रमण संस्कृतिमूलक 'श्रम' का जोर-शोर से प्रतिपादन किया है ।
श्रम तो हो, पर सम्यक् और सही दिशा में हो
एक पहलवान भी शारीरिक श्रम करता है और एक मजदूर भी । दोनों ही पसीना बहाते हैं और दोनों के ही शरीर में थकान होती है । परन्तु उनमें से एक हष्टपुष्ट हो जाता है और दूसरा क्षीणकाय, ऐसा क्यों ? शारीरिक श्रम तथा पसीना बहाने के पीछे पहलवान की भावना स्वास्थ्यलाभ की होती है । स्वास्थ्यलाभ की भावना अहर्निश करने से पहलवान हष्टपुष्ट एवं Safe हो जाता है । मजदूर की श्रम के पीछे भावना इस प्रकार की होती है कि मैं पेट भरने के लिए परिश्रम कर रहा हूँ, पैसे के लिए मुझे श्रम करना पड़ता है । वस्तुतः वह जीविका की मजबूरी से श्रम करता है । श्रम के पीछे विवशता और लाचारी की भावना मजदूर के शरीर को क्षीण कर देती है, वलिष्ठ नहीं होने देती । अपने शरीर की शक्तियां क्षीण होते देख मजदूर दुःखी होता है । उसका श्रम उसे आनन्ददायक नहीं लगता ।
यही अन्तर मिथ्यादृष्टि या अज्ञानी के श्रम और सम्यग्दृष्टि के अध्यात्मलक्ष्यी या संवर - निर्जरालक्ष्यी अथवा कर्मक्षयलक्ष्यी श्रम में है । मिथ्यादृष्टि भी पुरुषार्थं तो बहुत करता है, शरीर को कष्ट देने वाले विविध तप करता है, घंटों मल-मल कर नहाता है, पंचाग्नि तप तपता है, ऊँची भुजाएँ करके खड़ा रहता है, रातदिन भगवान के नाम की ही रट लगाता है, पर कार्य भगवान् का नहीं करता, प्रभु के आदेश - सन्देश से विपरीत चलता है, नामना - कामना एवं प्रसिद्धि के लिए बड़े-बड़े अनुष्ठान कराता है, अपने सम्प्रदाय की प्रतिष्ठा और जाहोजलाली के लिए उलटे-सीधे तर्कों, विपरीत चर्चाओं, तथा दूसरे सम्प्रदाय या उसके अनुयायियों को बदनाम या मिथ्यादोषारोपण करने के लिए आकाश पाताल एक करता है । द्वेषबुद्धिवश दूसरों को पराजित करने, वितण्डावाद करके झगड़ा करने में अतीव पुरुषार्थ करता है । बहुत से लोगों का पुरुषार्थ धर्मिष्ठ कहलाने, पद-प्रतिष्ठा पाने, यश बटोरने, वाहवाही लूटने तथा स्वार्थ सिद्ध करने के लिए होता है । अथवा अध्यात्म का वाचिक पुरुषार्थ भी होता है, केवल पाण्डित्य या विद्वत्ता प्रदर्शित करने के लिए । अथवा समतायोग की लम्बी-चौड़ी लच्छेदार भाषणबाजी
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