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________________ सम्यक्श्रद्धा के आधारभूत लक्षणों के सन्दर्भ में'शम' और उसका स्वरूप शम का प्रथम रूप -- श्रम श्रमण संस्कृति का मूलाधार विश्व में अनेक संस्कृतियाँ पनपी हैं और अनेक लोगों ने उनका अनुसरण और अनुगमन किया है । भारतवर्ष में मुख्यतया दो संस्कृतियों विकास हुआ है । वे हैं - श्रमण-संस्कृति और ब्राह्मण-संस्कृति । संस्कृति का कार्य १२ यह ध्यान रखना चाहिए कि सभ्यता और संस्कृति में बहुत बड़ा अन्तर है । सभ्यता एक-एक वर्ग के बाह्य व्यवहार और रहनसहन से सम्बन्धित है । वह मुख्यतया शरीर और इन्द्रियों से सम्बन्धित चेष्टाओं, नैतिक नियमों तथा एक वर्ग, एक समूह या एक जाति का दूसरे वर्ग, समूह या जाति के साथ किये जाने वाले व्यवहार से सम्बद्ध है । जबकि संस्कृति मानव जीवन के प्रत्येक व्यवहार में मन और आत्मा से सम्बन्धित हित-अहित कर्तव्य - अकर्तव्य, दायित्व - अदायित्व, कल्याण-अकल्याण आदि का विवेक कराने वाली एक विचार-आचारधारा होती है । संस्कृति जीवन का आत्मकल्याण, आत्मज्ञान, आत्मसाधना, आत्मतृप्ति, आत्मध्यान एवं आत्मविकास की उच्च श्रेणी पर आरोहण करने का दिशानिर्देश करती है । संस्कृति मानव जीवन को आध्यात्मिक दृष्टि से संस्कारित करती है । वह जीवन जीने के मूल्यों और मानदण्डों का निर्धारण करती है । Jain Education International ( १३४ ) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003188
Book TitleSaddha Param Dullaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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