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________________ १३२ / सद्धा परम दुल्लहा सत्प्रवृत्तियों, उच्च आदर्शों, अन्तिम ध्येय या उत्कृष्टता के प्रति समर्पित जीवन का अर्थ है--परमात्मा के प्रति समर्पित जीवन । भारतीय स्वाधीनता संग्राम बिना किसी युद्ध के जीता गया । जननेताओं की समर्पित साधना को ही उसका श्रेय है। उस समय प्रायः सभी में न तो कोई महत्त्वाकांक्षा थी, न ही पूर्वाग्रह या हठाग्रह था, और न सेवा के फल की नामना या कामना थी । एकमात्र सरफरोशी की तमन्ना थी। ऐसे सच्चे समर्पण की भावना जहाँ भी उत्पन्न होगी, वहाँ सफलता के दर्शन शीघ्र ही होंगे। भक्तियोग में भी शरणागतिरूप समर्पण की प्रधानता है। गोपियों का कष्ण के साथ रास रचाने का तात्पर्य यह है कि सभी प्रवत्तियाँ (गोपियाँ) आत्मा (कृष्ण) की पुकार (वेणुवादन) का अनुसरण करें। वेदान्त में इसे अद्वैत-एकत्व कहते हैं। इसका तात्पर्य यह है कि वीतराग परमात्मा पर विश्वास करके, उनके सिद्धान्तों, आदर्शों या आज्ञाओं को शिरोधार्य करने तथा उनकी प्रेरणा को जीवन नीति के साथ एकाकार कर देने से समर्पित आत्मा के लिए परमात्मा या मोक्ष का प्राप्त कर सकना आसान हो जाता है। गुरुचरणों में समर्पण का फल जिन साधकों ने गुरु के प्रति स्वयं को समर्पण कर दिया, उहोंने भी यथेष्ट फल प्राप्त किया है। स्वामी विवेकानन्द ने स्वयं को रामकृष्ण परमहंस के चरणों में समपित न किया होता और उस समर्पण के प्रति वफादार न रहे होते तो रामकृष्ण परमहंस के दूसरे शिष्यों की तरह वे भी कोई उल्लेखनीय कार्य नहीं कर सके होते। समर्थ गुरु रामदास को समर्पित होने के बाद शिवाजी का जीवन अनासक्त और उच्चस्तरीय हो गया । शंकराचार्य को आत्म-समर्पण करके मान्धाता जातीय जीवन के गौरव बने । महर्षि दयानन्द अपने गुरु स्वामी विरजानन्दजी के प्रति पूर्ण समर्पित होने से आर्यसमाज के संस्थापक एवं वैदिक संस्कृति के उद्धारक बने । वस्तुतः समर्पण व्यक्ति की निष्ठा की परख है । उस पर खरा उतरने पर ही समर्पण सार्थक होता है। आत्मसमर्पण : देवाधिदेव, गुरु और धर्म के प्रति जिस प्रकार वीतराग देवाधिदेव के प्रति समर्पण की साधना में पूर्णतया सावधान रहना पड़ता है कि साधक कहीं उनकी आज्ञाओं, आदर्शों या Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003188
Book TitleSaddha Param Dullaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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