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________________ उपासना का राजमार्ग | १२३ लेकर उस पवित्रता के देवता - परमात्मा की उपासना कैसे कर सकता है ? यही उपासना की सफलता है । अतः उपासना की पूर्व भूमिका साधना से प्रारम्भ होती है । बाह्य और आभ्यन्तरतप आत्मा पर छाये हुए कुसंस्कारों कुविचारों और दुष्प्रवृत्तियों का निराकरण है । किसान को बीज बोने से पहले भूमि को जोतने, उसे मुलायम बनाने तथा उसमें से झाड़-झंखाड, काँटे - कंकर निकालने की तपस्या (साधना) करनी पड़ती है । अन्यथा बहुमूल्य बीज बोने का उसका श्रम व्यर्थ चला जाएगा । उसी प्रकार उपासक को उपास्य की पूजा-भक्ति करने के लिए तथा उनके गुणों को अपने जीवन में उतारने के लिए सर्वप्रथम पूर्वोक्त साधना करनी आवश्यक है । इस दृष्टि से उपासना बीज है तो साधना उपजाऊ भूमि है । उपासना पौधा है तो साधना सिंचाई है । रंगरेज कपड़े की रंगाई करने से पहले उसकी धुलाई करता है । मैला वस्त्र रंग को भी बर्बाद करता है और रंगरेज को बदनाम । इस दृष्टि से साधना द्वारा व्यक्ति का जीवन - वस्त्र धुला हुआ हो, तभी उस पर उपासना का रंग चढ़ाना सार्थक हो सकता है। कपड़े को सर्फ में धोकर निर्मल कर देने पर ही उस पर टिनोपाल की झलक चमक एवं शोभा देती है । साधना सर्फ पाउडर के समान आत्मा को मलरहित बनाती है, और उपासना टिनोपाल की तरह उसे चमकाती है, तेजस्वी बनाती है । उपासना सफल क्यों नहीं होती उपासना की एक सरीखी प्रक्रिया का अवलम्बन लेने पर भी एक व्यक्ति को वह सिद्ध हो जाती है, दूसरे को निराशा ही मिलती है । इसी प्रकार वही पंच परमेष्ठी देव, वही मंत्र और वही विधि एक की फलित और दूसरे की निष्फल हो जाती है । इसके पीछे वीतराग परमात्मा या पंच-परमेष्ठी देवों में किसी के प्रति पक्षपात या उपेक्षा नहीं है । पंचपरमेष्ठी देवों, मंत्रों या विधि की उत्कृष्टता एवं अलौकिकता में कमी नहीं, किन्तु उनसे लाभान्वित हो सकने की पात्रता उपासक में होनी अत्यन्त आवश्यक है । उपासना के नाम पर केवल उपास्य के दर्शन श्रवण आदि उपासनात्मक क्रियाकाण्ड झटपट कर लेना ही पर्याप्त नहीं । तलवार भले ही तेजतर्रार हो, किन्तु उसे चलाने वाले का भुजबल, साहस एवं कौशल न हो तो उससे वह लाभ नहीं उठा सकता। बिजली की शक्ति में कमी न होने पर भी उससे लाभान्वित होने के लिए उसी प्रकार के यंत्र चाहिए। घृतसेवन का लाभ वही उठा सकता है, जिसकी पाचन क्रिया ठीक हो । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003188
Book TitleSaddha Param Dullaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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