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| सद्धा परम दुल्लहा
करता रहता है, जिसे अपनी आत्मा और आत्म-शक्ति पर श्रद्धा नहीं होती उसे इस बात पर विश्वास ही नहीं होता कि मेरा जीवन आत्मविकास के लिये है, आत्मशुद्धि करके उत्तरोत्तर मुक्ति की ओर प्रयास करने के हेतु है; उसका जीवन निरुद्देश्य है । अश्रद्धा उसके जीवन को असफल, भयावह एवं शंकाकुल अथवा आकुलता - व्याकुलता से ग्रस्त बना देती है । ऐसा अश्रद्धाशील व्यक्ति स्वयं तो मानसिक क्लेश और बौद्धिक भ्रम से ग्रस्त रहता ही है, दूसरों के साथ भी वह कलह, क्लेश तथा कदाग्रह करता है, दूसरों के जीवन में भी वह निराशा, हताशा, अश्रद्धा, आत्मविश्वासहीनता; साहसशून्यता भर देता है । अश्रद्धा चाहे अपने प्रति हो या अपने हितैषियों गुणिजनों एवं सत्तत्वों के प्रति हो, उससे मानव जीवन पंगु, पराश्रित एवं पाशविक बन जाता है । वह किसी भी अच्छे कार्य का सम्पादन एवं सम्यक् सिद्धान्त का प्रतिपादन करने का साहस नहीं कर पाता । जो लोग श्रद्धा की अमोघ शक्ति को नहीं जानते, वे जीवन की सांध्य बेला में पश्चात्ताप करते हैं, वे निराशापूर्ण स्वर में कहते हैं, हमने मानव-जन्म पाया लेकिन कुछ भी उपलब्ध नहीं किया, अब हमें असफल होकर जाना पड़ रहा है ।
अश्रद्धा की अपेक्षा सामान्य श्रद्धा अच्छी है । जैसे—माता अपने बालक को कहती है- 'आग जला देती है, मिर्च मुंह जलाती है, विषभक्षण से मनुष्य का प्राणान्त हो जाता है ।' बच्चा माता की बात पर श्रद्धा कर लेता है । इसी प्रकार की कई बातें हैं । जो पिता माता, अध्यापक, समाजनेता, राष्ट्र नेता, लोकसेवक, बुजुर्ग आदि से बालकों और युवकों को सुनने-समझने को मिलती हैं, और वे बालक और युवक उन पर पर श्रद्धा कर लेते हैं । ये सब सामान्य श्रद्धाएँ हैं । इनसे आत्मा का कल्याण नहीं होता, न ही इस प्रकार की श्रद्धा से मनुष्य का आध्यात्मिक विकास होता है । कभी-कभी तो भ्रान्त दृष्टि के माता-पिता बच्चों और युवकों को ऐसी श्रद्धा के नाम पर अन्धश्रद्धावश हानिकर प्रथाओं, कुरूढ़ियों, मृत भोज जैसे खोटे रीति-रिवाजों, देवी-देवों को पशुबलि जैसी शराब, मांस चढ़ाने जैसी हिंसक एवं दानवी कुरीतियों, तथा खून का बदला खून से लेने की वैर परम्परा के बढ़ाने की प्रेरणा जाने-अनजाने दे देते हैं। छोटे-छोटे रोते हुए अबोध बच्चों को चुप करने के लिए माताएँ उनमें होआ, बाबा, भूत आदि का भय श्रद्धा के नाम पर घुसा देती हैं । इस प्रकार सामान्य श्रद्धा जब अन्धश्रद्धा और कुश्रद्धा का रूप ले
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