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सम्यक् श्रद्धा : एक चिन्तन ! 8
लेती है, तब तो और भी भयंकर अनर्थकारिणी बन जाती है । अन्धश्रद्धा की अपेक्षा कुश्रद्धा तो और भी भयंकर होती है। ऐसी कुश्रद्धा जब हिंसा, असत्य, बेईमानी आदि पापों तथा काफिरों को तथा अन्य सम्प्रदाय के अनुयायियों को मार डालने, हैरान-परेशान करने, उन्हें उनके मानवीय अधिकारों से वंचित करने आदि पाप वर्द्धक कुकृत्यों को धर्म बता देती है । पशुबलि को अहिंसा, आत्महत्या को धर्म एवं अन्य मत- पन्थ के लोगों को सहयोग देने में पाप बताने जैसी कुश्रद्धा तो मानव जाति में कहर बरसा देती है । हिंसक एवं अत्याचारी कुदेवों को देव, गांजा, सुल्फा, भांग, शराब जैसी नशीली चीजों के सेवन करने वाले कुगुरुओं को सद्गुरु मानकर उन पर श्रद्धा रखने की बात कही जाती है, वह तो श्रद्धा की कब्र खोदने जैसी बात है । इतना ही नहीं, जो गुरु या ग्रन्थ सम्प्रदाय, मत पन्थ के नाम पर मानव-मानव में भेद डालने और अपने से भिन्न सम्प्रदाय के लोगों को बदनाम करने और नीचा दिखाने का कार्य करते हैं, समाज में थोथे महत्वहीन युगबाह्य क्रिया-काण्डों के नाम पर अपनी उत्कृष्टता की डींग हांक कर विषमता फैलाते हैं, अपने सम्प्रदाय और गुरुओं के प्रति श्रद्धा रखने और सम्यक्त्व बदलाने की बात करते हैं, वे श्रद्धा के नाम पर पन्थवादी श्रद्धा का प्रचार-प्रसार करते हैं । यह भी एक प्रकार की लौकिक सामान्य श्रद्धा है, जो अपने पन्थ, सम्प्रदाय या मत के घेरे को मजबूत बनाने के लिए होती है । यह आत्मलक्ष्यी श्रद्धा के वदले सम्प्रदायलक्ष्यी श्रद्धा बन जाती है । इसी प्रकार बात-बात में बहम, प्रत्येक व्यक्ति और परिस्थिति में कुशंका, देवी को पशुबलि नहीं दोगे तो वंश का नाश कर डालेगी, तथा विक्षिप्त व्यक्ति को देखकर भूताविष्ट मान लेना, एवं पद-पद पर टोने, टोटके, मन्त्र यन्त्रादि के चक्कर में पड़ना आदि अन्धविश्वास भी अन्धश्रद्धा के नाती-पोते हैं ।
यही कारण है कि आजकल के पढ़े-लिखे व्यक्ति कह दिया करते हैं कि आजकल के धर्मगुरुओं द्वारा ऊपर से दी हुई श्रद्धा का विवेक-बुद्धि, वैज्ञानिक दृष्टि और हितैषिता या आत्म विकास से कोई वास्ता नहीं होता । प्रायः देखा जाता है कि ऐसी सम्प्रदायवादी श्रद्धाएँ संसार के अन्य धर्म सम्प्रदायों की तरह कट्टरता बढ़ाने वाली तथा धर्मझनून पैदा करने वाली साबित होती हैं । ऐसी तथाकथित श्रद्धाएँ मानव-मानव में शत्रुता, विद्वेष और वैर परम्परा बढ़ाने वाली और एक दूसरे सम्प्रदायों के अनुयायियों को परस्पर लड़ाने - भिंड़ाने तथा एक दूसरे को बदनाम करने वाली
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