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१०८ } सद्धा परम दुल्लहा प्रस्तुत करते हैं, मानो पूरा घटना क्रम उन्हीं के व्यक्तिगत जीवन का और वास्तविक हो। इतने पर भी अभिनय में जो हर्ष-शोक के अवसर आते हैं, उनका उनके मानस पर कोई गहरा प्रभाव नहीं पड़ता। उनसे वे अलिप्त रहते हैं। अभिनय समाप्त होते ही वे अपने सामान्य जीवन क्रम में जुट जाते हैं।
अतः जो व्यक्ति खिलाड़ी या अभिनेता की भावना से संसार में जी सकता है, उसे ही परिष्कृत दृष्टि सम्पन्न जीवन का कलाकार कहना चाहिए। वह स्वयं प्रसन्न रहता है और दूसरों को भी प्रसन्न रहने की प्रेरणा देता है। भाव-अभाव, जय-पराजय, हर्ष-शोक, हानि-लाभ उसके लिए जगत् की नाट्यशाला में रंगमंच पर आते-जाते रहने वाले उतार-चढ़ावमात्र हैं। इस प्रकार की भावना रखकर चलने से जिंदगी बहुत हलकी-फुलकी हो जाती है, और हर हाल में प्रसन्नतापूर्वक जीया जा सकता है। उत्कृष्ट जीवन और निकृष्ट जीवन का लक्षण
जिन की दृष्टि स्पष्ट और सम्यक् नहीं है, वे लोग छोटी-सी घटना को, मामूली प्रतिकूल परिस्थिति को बहुत ही महत्त्व दे देते हैं, और जरा जरा-सी बात पर दूसरों से झगड़ा कर बैठते हैं, किसी ने जरा-सो सच्ची किन्तु चुभने वाली बात कह दी तो वे झल्ला उठते हैं, भावावेश में आकर उफन पड़ते हैं। किसी ने कड़वी बात कह दी तो उसे गांठ बांधे रहते हैंऔर अवसर पर बदला लेने की ताक में रहते हैं । इस प्रकार वे सुरदुर्लभ मानव जीवन को सफलतापूर्वक जीने के बजाय असफल, असन्तुष्ट और पराजित बना डालते हैं।
उत्कृष्ट जीवन जीने वाले लोग छिद्रान्वेषण, निन्दा, चुगली, ईर्ष्या द्वेष और धृणा से दूर रहकर दूसरों के दुःख हटाने और वास्तविक सुखवद्धि में सहायक होने की बात सोचते हैं। वे तोड़फोड़, दंगा, आगजनी, डकैती, चोरी, ठगी आदि असामाजिक लोगों जैसी प्रवत्तियों तथा द्य तकर्म, मांसाहार, मद्यपान, व्यभिचार, शिकार आदि कुव्यसनों को तो पास ही नहीं फटकने देते । वे सतत सावधान रहते हैं कि ये दुष्कर्म जीवन में आगए तो जीवन सच्चे आनन्द से वंचित हो जाएगा।
जिंदगी की प्रसन्नता और सफलता का रहस्य यही है। इस प्रकार उत्कृष्ट जीवन जीने की दृष्टि, भावना रखी जाए और तदनुरूप चेष्टा की जाए तो जीवन स्वयमेव परम लक्ष्य की ओर प्रगति करने लगता है।
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