________________
यथार्थ जीवन दृष्टि का मूल्यांकन | ६६ मनोहर दृश्यों, मनमोहक पदार्थों या आकर्षक व्यक्तियों में मोहित नहीं होते । मोहित होने पर तो उन्हीं में रमने और उन्हीं खेल तमाशों में उलझ जाने का मन करेगा। फिर गन्तव्य स्थान तक पहुँचना कठिन हो जाएगा। वह यात्री वहीं अटक-भटक जाएगा। जीवन यात्रा के पथ में कई घनिष्ठ भी बन जाते हैं। सौजन्य की दृष्टि से तो उनके साथ सहानुभूति और सद्भावना रखने में कोई हानि नहीं बल्कि नैतिक-धार्मिक दृष्टि से सहयोग और सद्भाव रखने वालों को अपने दल के सहयात्री के रूप में साथ लिया जा सकता है। परन्तु उन सहयात्रियों के साथ इतनी घनिष्ठ आसक्ति, ममता-मूर्छा न जोड़ी जाए कि उनके साथ चलने पर अपना गन्तव्य स्थल (लक्ष्य) ही याद न रहे।
__जीवन यात्रा के दीर्घपथ में कहीं कटु, कहीं मधुर पदार्थ और परिस्थितियां मिलती रहती हैं। उनको देखने, समझने और उनका मूल्यांकन करने की दृष्टि हो तो वह लक्ष्य से कदापि भ्रष्ट नहीं होता। सुखद स्थिति को देखकर उसी में रम जाने की और प्रिय व्यक्तियों को देखकर बिना परखे उन्हीं के हो जाने की बालबुद्धि नहीं की जानी चाहिए, अन्यथा लक्ष्य तक पहुँचना कठिन हो जाएगा । व्यामोह के जंगल में फँस जाने पर गन्तव्य स्थल की प्राप्ति भी खटाई में पड़ जाएगी।
मोह और लोभ की परिणति ऐसी लोह की बेड़ी होती है, जिससे बँधा हुआ मानव न तो मानवोचित कर्तव्यों और दायित्वों का पालन कर पाता है और न ही लक्ष्य की ओर बढ़ने में सफल हो पाता है।
___मोह की अति का परिणाम तो और भी अधिक भयंकर होता है । जिन व्यक्तियों को अपनी सम्पत्ति मान लिया जाता है, उनके प्रति असंतुलित व्यवहार होने लगता है। या तो अपने स्त्री-पूत्रों को इन्द्र जैसे सूख साधनों से लाद देने की ललक रहती है; या फिर उनके अवज्ञाकारी निकलने पर उन्हें जैसे-तैसे मार डालने का क्रोध आता है। यह न बन पड़े तो फिर अपना ही सिर फोड़ने को जी करता है। दोनों ही प्रकार की मनःस्थिति अतिवादी है। इससे मोहपात्रों की दुहरी हानि होती है। उन्हें भोग-विलास की सुखसामग्री का अमर्यादित उपभोग करने का अवसर मिलते रहने से उनकी सुकुमारता, प्रमादवृत्ति, आलस्यवृत्ति और अहंवृत्ति बढ़ती है, आदतें बिगड़ती हैं और जीवन संग्राम में संघर्षों और प्रतिकूलताओं से जूझकर लक्ष्य पथ पर आगे बढ़ने की प्रतिभा नष्ट होती है । यदि पहले स्वच्छन्दतापूर्वक रहने देकर खुली छूट दे दी जाती है, और फिर कठोर अनुशासन और
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org