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________________ B यथार्थ जीवन दृष्टि का मूल्यांकन मानव जीवन की सार्थकता : यथार्थ दृष्टिकोण अपनाने पर विश्व के सभी प्राणियों की अपेक्षा मनुष्य को जो जीवन मिला है, वह अनुपम है ! सचमुच मानव जीवन दुर्लभ और बहमूल्य है । सारे जगत् के चर-अचर पदार्थों का ज्ञान-विज्ञान एवं उन पदार्थों के प्रति यथार्थ दृष्टिकोण अपनाने पर ही सच्चा आनन्द, स्वानुभव का सुख एवं हर परिस्थिति में आल्हाद प्राप्त हो सकता है । आनन्द, सूख एवं आल्हाद की प्राप्ति के लिए जीवन के यथार्थ बोध अथवा जीने के यथार्थ दृष्टिकोण को अपनाना भी आवश्यक है । महापुरुषों ने मनुष्य जीवन की गरिमा और महिमा को समझकर अलभ्य उपदेश भी दिया है कि ऐसा जीवन जीने का उपक्रम करो, जो हर्षोल्लास से, शान्ति और सन्तोष से, प्रसन्नता और प्रफुल्लता से, आध्यात्मिक समृद्धि और प्रगति से भरा-मुरा हो । जीवन का लक्ष्य क्या हो, क्या नहीं ? डॉ. फैक्ल के अनुसार आज के अधिकांश मनुष्यों को जीवन के अर्थ का बोध नहीं है । वे यह नहीं जानते कि मैं कौन हूँ ? क्यों जी रहा हूँ ? मेरा जीना जीना भी है या नहीं? मेरे जीवन का लक्ष्य क्या है ? सही ढंग से जीने के लिए जीवन दृष्टि क्या होनी चाहिये ? वर्तमान में अधिकांश मानव अपने जीवन को ढो रहे हैं । जीवन उनके लिए आनन्द नहीं, मजबूरी है । भोगतप्ति, शक्ति संचय अथवा संघर्षों से मानव अपने जीवन के वास्तविक लक्ष्य से भटक रहा है । अपूर्णता से पूर्णता तक पहुँचना उसका जीवन लक्ष्य है। इसी आध्यात्मिक विकास की पूर्णता को प्राप्त करने के लिए मनुष्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003188
Book TitleSaddha Param Dullaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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