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उत्कृष्ट आस्था के मूलमंत्र | ६५ आस्था उसे उज्ज्वल भविष्य को व्यवस्था बनाये रखने का सूनिश्चित आश्वासन देती रहती है । निराशा को अन्धियारी उसे छू भी नहीं सकती।
___ आस्थाओं में परिवर्तन का महत्त्व आस्थाओं का इतना अधिक प्रभाव जीवन पर रहता है कि आर्थिक नियम, राजकीय कानून, सामाजिक विधान, प्रवचन, भाषण, तर्क, या प्रशिक्षण आदि कोई भी इतना अधिक प्रभावित नहीं कर पाते । किन्तु यदि मानवीय आस्था मोड़ी जा सके तो व्यक्ति वाल्मीकि, अंगुलिमाल, दृढ़प्रहारी, रोहिणेयचोर, प्रभवदस्यु, गणिका, अजामिल, कालसौकरिक की तरह परिवर्तित होकर दुष्ट से महान् एवं सन्त बन सकता है । आस्थाकेन्द्र-अन्त रात्मा को पविवर्तित किया जा सके तो सामान्य जीवन के क्रियकलाप स्वतः ही बदल जाते हैं।
आस्थाओं के पूननिर्माण का अन्यतम उपाय है-- तपस्या, तितिक्षा, सहिष्णुता, संयम भावना या आत्मभावना । इसमें तन-मन को अनेक प्रतिकुल परिस्थितियों से गुजरना पड़ता है। पर इससे मनुष्य का दृष्टिकोण उदार एवं विशाल बनता है। शोषण, उत्पीड़न और भ्रष्टाचार से वह स्वयं ही दूर भागता है। राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर, ईसामसीह आदि महापुरुषों की कार्यपद्धतियाँ भले ही भिन्न रहो हों; उनका दर्शन आस्थाओं में मोड़, मान्यताओं में आदर्शवाद का समावेश, दृष्टि-परिवर्तन का हो रहा है। जनमानस को अन्तर्मुखी बनाना ही उनका उद्देश्य था।
ये और ऐसे ही कुछ और उत्कृष्ट आस्थाओं के मूल मंत्र हैं, जिन्हें जीवन में अपनाकर साधारण व्यक्ति भी महान् एवं दीर्घद्रष्टा बन सकता
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