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________________ ६२ ! सद्धा परम दुल्लहा और परमात्मशक्ति की कृपा भी असाधारण होती हैं । हजारों लाखों देवीदेव, इन्द्र-नरेन्द्र आदि भी करबद्ध होकर उसकी सेवा में तत्पर रहते हैं। दशवैकालिक सूत्र में इसी तथ्य का संकेत है-- 1'देवावि तं नमसंति, जस्स धम्मे सया मणो' "जिसका मन (अन्तःकरण) सदैव धर्म में लीन रहता है उसे देवता (तथा चक्रवर्ती, सुरासुरेन्द्र एव नरेन्द्र आदि) भी नमस्कार करते हैं।' सामान्य नरपशुओं या बुद्धिजीवियों की तुलना में उत्कृष्ट आस्थावान् की गरिमा-महिमा हजारों लाखों गुनी बढ़ जाती है । उत्कृष्ट आस्थाएँ दृढ़ होने पर जिसकी अन्तरात्मा में उत्कृष्ट आस्थाएँ जड़ जमा लेती हैं, उसके हर श्वास में परमात्मतत्व झांकता हुआ देखा जा सकता है । शुद्ध आत्मा का साक्षात्कार होते रहने से उसकी महान् आत्मा सन्मार्ग पर चलने से प्रसन्नता एवं सन्तुष्टि तथा कूमार्ग पर चलने से खिन्नता और उद्विग्नता का अनुभव करती है। उसके जीवन में अनायास ही समता, सर्वभूतात्मभूतदृष्टि, क्षमा, मद्ता, सरलता, सिद्धान्तनिष्ठा, निर्भयता आदि उच्चस्तरीय तत्वों की अभिवृद्धि हो जाती है। संकीर्ण एवं निजी स्वार्थपरता, क्षुद्र आकांक्षाओं, एषणाओं, स्पृहा, आदि पर झंकुश लग जाता है। सार्वजनिक हित और कल्याण के लिए वह अपना सर्वस्व त्यागने के लिए तत्पर रहता है। देशभक्ति, संघभक्ति, सावित्सलता, देव-गुरु-धर्म भक्ति, समाजहितैषिता, आध्यात्मिकता आदि उत्कृष्ट आस्था के ही अंग हैं। सामाजिक सुव्यवस्था, संघभक्ति, आदि के लिए अर्थ आदि साधनों की उतनी आवश्यकता नहीं रहती जितनी कि उत्कृष्ट एवं सूदृढ़ आस्थाओं की । जिसमें बौद्धिकता अधिक और आध्यात्मिकता स्वल्प होती है। रटीरटाई बातें या सिद्धान्तों की चर्चा ही जिसके दिमाग में भरी रहती है, जीवन में पूर्वसंचित कुसंस्कार या स्वार्थपरता के कीटाणु भरे रहते हैं, उसमें सुदृढ़ उत्कृष्ट आस्था नहीं होती, फलतः वह निम्नवृत्ति-प्रवृत्तियों के प्रवाह में बह जाता है । उसके जीवन में मानवीय आदर्श और सार्वजनिक हित बद्धमूल नहीं हो पाते। प्रगतिशील जीवन का सर्वोत्कृष्ट आधार उत्कृष्ट आस्था है। १ दशवैकालिश सूत्र अ.१, गा ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003188
Book TitleSaddha Param Dullaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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