________________
उत्कृष्ट आस्था के मूलमंत्र | ६१
स्वाध्याय, पाठ, सत्संग, चिन्तन, मनन, प्रवचन-भाषण आदि आस्था के चिन्तन पक्ष को स्पष्ट, सुलझा हुआ, उपादेय एवं प्रबल करने के लिए हैं । कर्तृत्व पक्ष की पूर्ति के लिए अभ्यास, त्याग, तप, वैराग्य, अहिंसादि धर्म का आचरण, क्षमा आदि गुणों का जीवन में अवतरण बताए गए हैं। अध्यात्म विज्ञान के क्रियापरक पक्ष के दो चरण हैं-एक है आत्मनिर्माण और दूसरा है-लोक-कल्याण । इन दोनों के लिए जो प्रयत्न करने पड़ते हैं, उनसे संकीर्ण स्वार्थपरता, अहंकारिता, विलासिता और अनुदारता जैसी पाशविक दुष्प्रवृत्तियों को चोट पहुँचती है, स्वार्थ साधनों में कमी आती है। परमार्थ प्रयोजनों की साधना करते हुए कई कठिनाइयों का सामना करना पडता है, परीषहों और उपसर्गों को समभावपूर्वक सहना पड़ता है। अध्यात्मयोगी इन्हीं प्रयत्नों में तल्लीन रहते हैं । वे अपने संग्रहीत कुसंस्कारों को, खराब आदतों एवं दुर्वृत्तियों को उच्चस्तरीय आस्थाओं में परिणत करने के लिए भावनात्मक एवं क्रियात्मक दोनों प्रकार के पुरुषार्थ करते रहते हैं। निकृष्टता जितने अंशों में उत्कृष्टता में परिणत हो जाती है, समझा जाना चाहिए उतने ही अंशों में आत्मा शुद्ध, परिष्कृत एवं पवित्र हुई है, उतने ही अंशों में आत्मा को परमात्मत्त्व की प्राप्ति चुकी है।
___उत्कृष्ट आस्थाओं की उपलब्धियाँ उत्कृष्ट आस्थाओं का मूल्य इतना अधिक है उसके समक्ष जम्बूद्वीप के असंख्य द्वीपों और समुद्रों की सम्पदा भी तुच्छ जान पड़ती है। यह अन्तरात्मा के स्तर को समुन्नत बनाने के उपरान्त व्यक्तित्व को प्रखर बनाकर आत्मशक्ति और लोकनिर्माण को उच्चस्तरीय लाभ प्राप्त कराता है। चतुर और समर्थ कहलाने वाले तार्किक या दिग्गज विद्वान् जहाँ उत्कृष्ट आस्था-सम्पदा के लिए तरसते रहते हैं, वहाँ आत्मसंयमी, सर्वभूतात्मभूत, तपत्याग के धनी सरलात्मा सज्जन उत्कृष्ट आस्था-सम्पदा को अनायास ही प्राप्त कर लेता है । अन्तरात्मा में उत्कृष्ट आस्थाओं की स्थापना कर लेना मोक्ष के द्वार खोलना है। प्राचीन पारिभाषिक शब्दों में जिन्हें आत्मसाक्षात्कार, बन्धन-मुक्ति की कुंजी की उपलब्धि, सिद्धि के शिखर की दिशा में प्रयाण कहते हैं, वे सब उत्कृष्ट आस्थाओं के परिणाम हैं। न्यायनिष्ठा के प्रति अडिग रहने तथा सत्य एवं सिद्धान्त के आग्रह में चट्टान की तरह अडोल रहने की शक्ति उत्कृष्ट आस्था से ही प्राप्त होती है । नैतिक साहस एवं प्रण के प्रति पूर्ण वफादार रहने की हिम्मत भी इसी से प्राप्त होती है ।
निष्कर्ष यह है कि उत्कष्ट आस्थाओं से प्राप्त होने वाली उपलब्धियाँ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org