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________________ उत्कृष्ट आस्था के मूलमंत्र | ८६ ही ठीक उसके विपरीत आचरण करते देखे जाते हैं। यह निकृष्ट स्तरीय एवं शिथिल आस्था या अनास्था का परिणाम है। किन्तु जिनकी आस्था अन्तःक्षेत्र में दृढ़ता से जमी हुई और उच्चस्तरीय है, वे भय और प्रलोभनों के बड़े से बड़े अवसर आने पर कथमपि विचलित नहीं किये जा सके हैं! उनमें उत्कृष्ट आस्था ही थी, जिसके बल पर उन्होंने सिद्धान्तों और आदर्शों की रक्षा के लिए बड़े से बड़े कष्ट सहे और त्याग किये हैं। संसार के इतिहास में ऐसे भी व्यक्ति हुए हैं, जिन्होंने निकृष्ट आस्थाओं से प्रभावित होकर भी अपने दृष्ट मनोरथ पूर्ण किये हैं। इसके विपरीत उत्कृष्ट आस्थाओं से प्रभावित व्यक्तियों ने अपने आदर्शों और सिद्धान्तों को रक्षा के लिये सिर धड़ को बजी लगा दी है। परीक्षा की हर कसौटी पर वे खरे सोने की तरह सही उतरे हैं। आस्था क्षेत्र की निकृष्टता बनी रहने पर तथाकथित आदर्शवादी उपदेशकों या वक्ताओं ने अपने जीवन में अनैतिक एवं अमानवीय आचरण किये हैं। कथा-प्रवचनों में रुचि रखने वाले लोग प्रायः अहिंसादि सद्धर्म की चर्चा सुनते रहते हैं। वैचारिक दृष्टि से वे उन सद्विचारों से सहमत भी होते हैं । कभी-कभी तो वे उन तथ्यों का दूसरों को उपदेश भी देते हैं। इतने पर भी उनके आचरण नीति और सद्धर्म के विपरीत देखे जाते है । धर्मचर्चा और सद्धर्माचरण की इस विसंगति का कारण यही प्रतीत होता है कि सद्धर्म के प्रति उनकी सुदढ़ आस्था का निर्माण अन्तःकरण की गहराई तक नहीं पहुँच सका है। कई लोगों की अपने धर्म-सम्प्रदाय के प्रति गहरी आस्था होती है, उन्हें युक्तियों और तर्को द्वारा उनके धर्म में प्रचलित गलत मान्यताओं के विरुद्ध कितना ही समझाया जाय, निरुत्तर हो जाने पर भी वे अपने पूर्वाग्रह को छोड़ने के लिए तैयार नहीं होते। तर्क, तथ्य, प्रमाण एवं उदाहरण द्वारा स्वल्प समय के लिए उन्हें प्रभावित एवं सहमत किया जा सकता है, परन्तु उनका हृदय परिवर्तन तभी हो पाता है, जबकि सद्धर्म के प्रति उनकी अन्तरात्मा में स्थित आस्था गहरी और उत्कृष्ट हो । अपरिपक्व आस्था के लोगों के मन-मस्तिष्क की उपरी सतह तक वे आदर्शवादी तथ्य तैरते भी रहते हैं, परन्तु जिनकी उत्कृष्ट आस्थाएं परिपक्व होती हैं, वे अनपढ़ अनगढ़ होने पर भी आदर्श के लिए सर्वस्व न्योछावर करने को तैयार रहते हैं। भगवान् महावीर, तथागत बुद्ध, ध्रव, प्रह्लाद, हरिश्चन्द्र, स्कन्धक, मैतार्यमुनि, दधीचि, ईसामसीह, सुकरात, महात्मा गाँधी, आदि महान् आत्माओं का निर्माण आस्थाओं की उत्कृष्टता के आधार हुआ है। उनकी शिक्षा, सम्पन्नता एवं परिस्थिति चाहे पर्याप्त अनुकूल न रही हो, फिर भी उत्कृष्ट आस्था की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003188
Book TitleSaddha Param Dullaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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