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________________ उत्कृष्ट आस्था के मूलमंत्र - - - - - आस्था द्वारा व्यक्तित्व का निर्माण मानव-जीवन के दो पक्ष हैं -- एक है बहिरंग शरीर और दूसरा हैअन्तरंग अन्तरात्मा। आत्मा के परिष्कार या व्यक्तित्व की श्रेष्ठता के लिए इन दोनों को श्रेष्ठ एवं समुन्नत बनाना आवश्यक है। मनुष्य के उत्थान और पतन का मूल कारण उसकी आस्था होती है। आस्था के अनुरूप ही उसके व्यक्तित्व का निर्माण होता है। व्यक्ति का मूल शासनसूत्र आस्थाओं के हाथ में रहता है। ये ही उसके जीवन की दिशाधारा निर्धारित करती हैं। __ मस्तिष्क और शरीर की क्रियाएं तो स्थूल हैं। मनुष्य क्रिया तक ही सीमित नहीं रहता । अधिकांश लोग यह जानते हैं कि इच्छाओं से विचारणाएँ और विचारणाओं से क्रियाएँ होती हैं । किन्तु इच्छाएँ भी मौलिक नहीं, वे चेतना के उस गहरे परत में से उदित होती हैं, जिन्हें आस्थाएँ कहा जाता है। आस्थाएं जहाँ जड़ जमा कर रहती हैं, उसे आस्तिकजन अन्तरात्मा कहते हैं। यहीं से शरीर और मन को प्रभावित करने वाले प्रवाहों को उभरने और कार्य करने की प्रेरणा मिलती है। जिस चिन्तन के द्वारा प्रेरणा मिलती है, उसकी परत इन सबसे गहरी है । इसी परत को आस्थाकेन्द्र कहते हैं । जिस प्रकार कुंए में भरा हुआ पानी उसके तल में जल फेंकने वाले स्रोतों से आता है, उसी प्रकार व्यक्तित्व का मूलस्रोत मनुष्य की अन्तरात्मा के गहन अन्तराल में आस्था बनकर रहता है। प्रिय और अप्रिय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003188
Book TitleSaddha Param Dullaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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