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८२ ! सद्धा परम दुल्लहा
सक्खं खु दीसई तवोविसेसो।
न दीसई जाइविसेस कोऽवि ॥ इसीलिए जैन-धर्म का यह उद्घोष रहा है कि मनुष्य अहिंसा, संयम, तप, त्याग, नियम आदि धर्माचरण, से पहले अपनी दृष्टि बदले, उस पर जमा हुआ मैल या कल्मष दूर कर ले । दृष्टिरूपी दर्पण स्वच्छ एवं निर्मल होगा, तो उस पर पड़ने वाला आत्मा, परमात्मा, देव, गुरु, धर्म या अन्य तत्वों का प्रतिबिम्ब भी स्पष्ट नजर आएगा। दृष्टिरूपी दर्पण मैला या धुधला होगा तो इन सब पदार्थों का प्रतिबिम्ब भी स्पष्ट दृष्टिगोचर नहीं होगा। अतः सर्वप्रथम दृष्टि को बदलिए, आपको सृष्टि स्वतः बदल जाएगी।
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