________________
७६ | सद्धा परम दुल्लहा
को सम्यक् रूप में ग्रहण करने की नहीं है तो वह तथ्यरूप अमृत भी उसके लिए विष बन जाएगा ।
दूध शारीरिक शक्ति में वृद्धि करने वाला पेय है, क्या बालक, क्या युवक और क्या वृद्ध सभी के लिए सात्त्विकबल प्रदायक है । परन्तु यदि कोई सन्निपात रोग से ग्रस्त व्यक्ति दूध मिश्री का सेवन करेगा तो उसका परिणाम होगा - मृत्यु । वस्तुतः दूध अपने आप में अमृत था । परन्तु सन्निपात रोगी के लिए वह विष बन गया । इसी प्रकार जिसकी दृष्टि में त्रिदोष का सन्निपात है, अर्थात् - संशय, विपर्यय और अनध्यवसाय इन तीन दोषों से जिसकी दृष्टि ग्रस्त है, उसे भगवती सूत्र आदि सम्यकशास्त्रीय तत्त्वज्ञानरूपी दूध भी विष के रूप में परिणत हो जाएगा । घृत शरीर में स्फूर्ति, शक्ति एवं तेजस्विता लाने वाला पदार्थ है, परन्तु किसी यकृत के रोगी को पिला दिया जाए तो वह विष का काम करेगा । इसी प्रकार मिथ्यादृष्टि- रोग से ग्रस्त व्यक्ति को सम्यक् तत्त्वरूपी घृत सेवन कराया जाए तो उसे वह पचेगा नहीं, वह विष के रूप में परिणत होगा ।
अभिप्राय यह है कि जब तक मनुष्य की दृष्टि शुद्ध, सापेक्ष, सम्यक् एवं परिमार्जित नहीं है तब तक उसे श्रेष्ठतम तत्त्वज्ञान, या सम्यक्शास्त्रों का अध्ययन भी करा दिया जाए या सर्वोत्तम वीतराग महापुरुष का सत्संग भी करा दिया जाए, तो भी उसका ज्ञान, उसकी आचरण सृष्टि विशुद्ध नहीं होगी, न ही मोक्षदायिनी होगी ।
इसी प्रकार जिस समय मनुष्य की दृष्टि शुभ, मंगलमयी एवं सम्यक् हो जाती है, उस समय वह विपत्ति को भी सम्पत्ति में, दुःख को भी सुख में परिणत कर लेता है ।
श्रुतिधर की दृष्टि स्पष्ट एवं सम्यक् नहीं बनी थी । वह यात्रा करने निकला । दिन भर चलने के बाद शाम को वह एक मकान में ठहरा | उसने देखा कि उसमें पशुओं का गोबर पड़ा है, मकड़ियों ने जहाँ-तहाँ जाले बुन रखे हैं । "यहाँ सर्वत्र अस्वच्छता है । अमंगल घर है यह ! इसमें रहना नरक में रहना है ।" यों विचार करके श्रुतिधर बेचैन हो उठा। रातभर बेचैन रहा। सुबह उसने उस घर का त्याग किया और समीपवर्ती एक गाँव में जाकर टिका । उस ग्राम में भी जहाँ-तहाँ गंदगी के ढेर पड़े थे । गाँव के मैलेकुचैले, अशिक्षित एवं निर्धन लोग उसके सत्संग में आए। यह देखकर श्रुतिधर का मन बेचैन हो उठा । सोचा - यह गाँव भी अमंगल है | वह
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org