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७२ | सद्धा परम दुल्लहा
बगदाद के अपार सम्पत्ति के स्वामी एक रईस अबू अली इब्न मोक्लाह ने वजीरे आजम का पद प्राप्त करने के लिए विपुल धनराशि खर्च कर दी। पद-समाप्ति की निर्धारित अवधि पूर्ण होने पर उसने पूनः खलीफा को एक बड़ी धनराशि पेश की । अपनी समस्त सम्पत्ति बर्बाद करके भी वह इस पद पर कायम बना रहना चाहता था। किन्तु धन के समाप्त होते ही खलीफा के आदेश से राजकर्मचारियों ने उसे पदच्युत कर दिया।
अवध का नवाब वाजिद अली शाह अत्यन्त भोगी-विलासी था । उस रंगीन मिजाज के बादशाह ने प्रजा के गाढ़े पसीने की कमाई को पानी की तरह बहाया । वह सनकी था। व्यर्थ का बड़प्पन सिद्ध करने के लिए वह निरर्थक खर्च करना था।
इस प्रकार के भारत के और विदेश के अनेक शासक एवं धनाढ्य भी ऐसे हए हैं, और हैं, जो केवल अपना बड़प्पन सिद्ध करने के लिए लाखों रुपये फिजुल खर्च कर डालते हैं।
उद्धत प्रदर्शन और अपव्यय की यह प्रवृत्ति कई व्यक्तियों में नहीं, कभी-कभी तो समूचे समाज में देखी जाती है । यह दृष्टिविहीन कृत्रिम सृष्टि है।
कई लोग कुरीतियों, वैवाहिक कुप्रथाओं तथा थोथे आडम्बरों एवं प्रदर्शनों में लाखों रुपये स्वाहा कर डालते हैं। गत वर्ष नागपुर में एक व्यापारी ने अपनी लड़की की शादी में लगभग एक करोड़ रुपया खर्च किया था। लगभग १० हजार व्यक्तियों ने इस विवाह-समारोह में भाग लिया था । स्थानीय साजसज्जा(Decoration) तथा रसोई बनाने, विविध मिठाइयाँ बनाने आदि कार्यों के लिए बम्बई, कलकत्ता और दिल्ली से विशेषज्ञ बुलाये गए थे। धन की इस चकाचौंध से लोगों की दृष्टि इतनी अन्धी हो गई थी कि किसी ने इस प्रकार के उद्धत प्रदर्शन एवं अपव्यय की भत्सना नहीं की। केवल धन या विद्वत्ता के बल पर लोकप्रिय बनने एवं प्रतिष्ठा अर्जन करने के ये भौंडे प्रदर्शन एवं अपव्यय गुणरहित सृष्टि की रचना करते हैं, जिसके पीछे आत्मकल्याण की या लोककल्याण की कोई दृष्टि नहीं होती । सामाजिक और नैतिक दोनों दृष्टियों से धन का दुर्व्यय एक अपराध है, ऐसा अपराध, जिसमें दूसरों की सुविधाएँ छिनती हैं और योग्य व्यक्ति के अधिकारों का हनन होता है। जिन्हें अनायास अथवा स्वकीय पुरुषार्थ द्वारा सम्पत्ति एवं समृद्धि हाथ लगी है, उन्हें भी इस शक्ति को सत्कार्यों में नियोजित करने की दृष्टि प्राप्त करनी चाहिए।
यह तो हुई बाह्य दृष्टि में परिवर्तन करने की बात !
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