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________________ ६६ । सद्भा परम दुल्लहा है। जिस प्रकार आजकल टेलीविजन, रेडियो या बेतार के तार या टेलीप्रिंटर द्वारा समाचार, सन्देश भेजा जा सकता है; गीत, प्रवचन या या संवाद सूना जा सकता है, किसी देश, स्थल या व्यक्ति का दृश्य देखा जा सकता है, इसी प्रकार एकाग्र शान्त मन के दृढ़ संकल्प द्वारा दूर-सुदूर तक समाचार प्रेषित किया जा सकता है, उसे आदेश-सन्देश दिया जा सकता है , यहाँ तक कि दृश्य भी दिखाया जा सकता है। भगवती सूत्र में इस तथ्य को शास्त्रीय भाषा में व्यक्त किया गया है कि केवलज्ञानी तथा निर्मल मन वाले भावितात्मा अनगार मनःपर्यायज्ञानी एवं अवधिज्ञानी, दूरस्थ मनुष्यों को विशेषतया देवताओं को बिना बोले समझा सकते हैं, उनके अन्तर्मन में स्फूरणा पैदा कर सकते हैं, उनके मन में स्थित प्रश्नों का उत्तर मन ही मन समझा सकते हैं। वास्तव में, दृढ़ संकल्प सूक्ष्म जगत् पर भी अचूक प्रभाव डाल सकते हैं, दूसरे मनुष्य के मन पर अधिकार जमा कर उसे आकर्षित कर सकते हैं। इसीलिए शिवसंकल्पोपनिषद् में कहा है यज्जाग्रतो दूरमुदति दैव, तदु सप्तस्य तथैवेति । दूरंगमं ज्योतिषां ज्योतिरेकं तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु ॥१॥ जो मन जागता हआ तथा सोता हुआ भी बहुत दूर तक जाया करता है, तथा इन्द्रियों के मध्य में इसी तरह चमकता है, जैसे आकाश में तारों के मध्य चन्द्र । हे प्रभो ! मेरा वह मन शुभ संकल्प वाला हो।" साधारण लोगों का मन इतना विकसित एवं सशक्त नहीं होता। यदि मन की सुषुप्त शक्तियों को पहचान कर संकल्प द्वारा उनका प्रयोग सत्कार्य में किया जाए तथा धीरे-धीरे उन शक्तियों को विकसित किया जाए तो बहत आश्चर्यजनक सत्कार्य किये जा सकते हैं। एक साधक अपने सशक्त संकल्पों को स्वेच्छानुसार दूरवर्ती मनुष्यों तक भेजना चाहे तो भेज सकता है । साधक की संकल्प शक्ति जितनी कम या अधिक होगी, उसी के अनुसार उसके विचारों का दूसरे मनुष्य पर न्यूनाधिक प्रभाव पड़ेगा। इसकी सफलता मनुष्य की मानसिक संकल्पशक्ति को दृढ़ता, तीव्रता एवं विश्वास पर निर्भर है। फ्रांस के अब्वेविले नगर की एक बारह वर्ष की लड़की एन्नैट फैलान ने भारतीय योगियों जैसी अद्भुत संकल्पशक्ति प्राप्त कर ली थी। उसने प्रायः मौन रहने का नियम बनाया था। जब कभी वह बोलती थी तो अत्यन्त सारगभित, संक्षिप्त और आवश्यकता से अधिक नहीं । उसका कहना था कि मनुष्य के बोलने से अधिक प्रभाव उसके गहन विचारों का होता है । इस कथ्य को वह प्रत्यक्ष प्रमाणित भी करती थी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003188
Book TitleSaddha Param Dullaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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