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________________ संकल्पशक्ति के चमत्कार | ६५ पूरी नहीं की गई, साथ ही जितनी तीव्रता, तत्परता और एकाग्रता एवं सतर्कतापूर्वक प्रयत्न किया जाना चाहिए, उतना नहीं किया जा सका। जैसी-तैसी परिस्थिति में पड़े रहना, जितना हआ है, उतने में ही संतोष मानना, उच्च स्थिति प्राप्त करने और आगे बढ़ने का उत्साह न होना, संकल्पशक्ति की निर्बलता है। संकल्प के साथ जब तक तदनुकूल पुरुषार्थ नहीं किया जाता, तब तक परिस्थितियाँ अनुकूल नहीं बनती, समस्याएँ अपने-आप हल नहीं हो पातीं। सफलता तभी मिलती है, या लक्ष्य-प्राप्ति तभी हो सकती है, जब पुरुषार्थ करने में जो कष्ट उठाना पड़ता है, उसे सहन करने के लिए व्यक्ति अपने शरीर और मन को सहज तैयार कर ले, तथा प्रमाद और आलस्य में किसी प्रकार दिन गुजारने वाला ढर्रा बदल ले । इनके लिए सर्वश्रेष्ठ उपाय दृढ़ सत्सकल्प है । सत्संकल्प का चाबुक ही मनुष्य के तन, मन, मस्तिष्क और आदतों को बदल सकता है । जो लोग अपने आपको दीन-हीन, असफल और पराधीन समझते हों, उनके लिए संकल्प अमोघ अस्त्र है । संकल्प यदि सुदृढ़ हो और तदनुसार प्रयत्न हो तो कैसी भी परिस्थिति में मनुष्य प्रगति और सफलता प्राप्त कर सकता है। महामानवों के अगणित जीवन-चरित्र इस बात के साक्षी हैं कि साधनहीन परिवारों में उत्पन्न होना तथा विपरीत परिस्थितियों से घिर जाना, उनकी प्रगति में देर तक बाधक नहीं रह सकता, क्योंकि उनमें आगे बढ़ने का अदम्य सकल्पबल विद्यमान था। मनुष्य में तन, मन और आत्मा की असख्य गुप्त शक्तियों का भण्डार भरा पड़ा है । संकल्पबल, अदम्य साहस और प्रबल पुरुषार्थ द्वारा उन्हें वह प्रकट करे तो महान् आश्चर्यजनक कार्य कर सकता है। मानसिक दृढ संकल्प के चमत्कार मनुष्य चाहे तो अपने मानसिक दृढ़ संकल्पबल के आधार पर सूक्ष्म दृश्य संस्थानों को विकसित कर दूरदर्शन, कर्णेन्द्रिय को विकसित कर दूरश्रवण एवं घ्राणेन्द्रिय को विकसित कर सुगन्धानुभव कर सकता है । धृतराष्ट्र की रानी गान्धारी अपनी संकल्पशक्ति द्वारा नेत्रों को जिस स्थान पर फिरा देती, वह स्थान वज्रमय एवं प्रहारसहनक्षम बन जाता था। अपने पुत्र दुर्योधन के जिन-जिन अंगों पर उसने दृष्टिपात किया, वे अंग वज्रमय बन गये। एक सशक्त संकल्प वाले व्यक्ति के मन-मस्तिष्क से दूसरे सुदूर बैठे हुए व्यक्ति के मन-मस्तिष्क तक विचार, सन्देश या आदेश पहुँचाया जा सकता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003188
Book TitleSaddha Param Dullaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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