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________________ ६० | सद्धा परम दुल्लहा हैं । प्रणबद्धता भी साथ में संलग्न होती है कि 'मैं इस सद्वस्तु को प्राप्त करके रहँगा, चाहे कितनी ही विघ्न-बाधाएँ क्यों न आएँ, प्रयत्न सतत् जारी रखंगा, चाहे कितने ही निराश करने वाले अवसर क्यों न आएँ ।' अगर इस प्रकार के दृढ़ संकल्प की मन में गहरी और सुदृढ़ स्थापना हो जाए तो लक्ष्य तक पहुँचना बहुत ही आसान हो जाता है। ऐसी संकल्पशक्ति के धनी बराबर आगे बढ़ते रहते हैं, और नई शक्ति भी प्राप्त करते जाते हैं। कई बार ऐसे महानुभावों को आने वाली विघ्न-बाधा या कठिनाई का विचार पहले ही आ जाता है, जिससे वे प्रतिकूल परिणामों से बच जाते हैं । वस्तुतः ऐसे व्यक्ति किसी लक्ष्य, ध्येय या सत्कार्य की सिद्धि का संकल्प लेते हैं, तब सजातीय विचारों एवं सुझावों की एक श्रृंखला दौड़ी हुई चली आती है। और उनके लिए अपने उपयुक्त रास्ता बनाना अत्यन्त सुगम हो जाता है। सफलता के लिए अपेक्षित परिस्थितियाँ ढूंढ़ लाने की शक्ति ऐसे संकल्प में है। बशर्ते कि उसका प्रखर संकल्प उद्देश्य, अटूट साहस, श्रद्धा एवं मनोबल से ओतप्रोत हो। ऐसे संकल्पवान् सत्पुरुष या सन्नारी के मानस में उन्नति का क्रम टूटना, आगे बढ़ने से रुकना या हिचकिचाना नहीं होता। संकल्प : मर्त्यलोक का कल्पवृक्ष वैदिक पुराणों में वर्णन आता है कि स्वर्ग में एक कल्पवृक्ष है, जिसके पास जाने से कोई भी मनोकामना अपूर्ण नहीं रहती। हम कहते हैं, ऐसा कल्पवृक्ष इस मर्त्यलोक में भी है, वह है--संकल्प का कल्पवृक्ष । __उन्नति की आकांक्षा रखना मनुष्य का स्वाभाविक गुण है, उसे आगे बढ़ना ही चाहिए। परन्तु यह उन्नति, भौतिक नहीं, आध्यात्मिक होनी वाहिए। सत्कार्य, सद्विचार एवं सुलक्ष्य को प्राप्त करने की दृढ़ इच्छा, तीव्र आकांक्षा या अभिरुचि होगी, तभी संकल्प के कल्पवृक्ष से मनोवांछित सिद्धि प्राप्त होगी। वहाँ अनेक वरदान और उपलब्धियाँ या सिद्धियाँ अनायास ही प्राप्त हो जाते हैं। धन, सहयोग या साधनों का अभाव संकल्परूपी कल्पवृक्ष के रहते नहीं खटकता, उनका वातावरण, भाग्य एवं संयोग भी अनायास ही परिवर्तित एवं अनुकूल हो जाता है। ऐसे संकल्पवृक्ष का स्वामी जब भी किसी कार्य को पूर्ण करने हेतु साधनों की तलाश करता है, तभी कोई न कोई उपाय निकल ही आता है। उसे आशातीत सफलता मिलने लगती है । सहयोग भी मिलने लगता है । और सच पूछिये तो, शक्ति का स्रोत साधनों में नहीं, संकल्प में है । यदि उन्नति करने की इच्छा तीव्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003188
Book TitleSaddha Param Dullaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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