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५८ | सद्धा परम दुल्लहा
बिना थके आगे बढ़ते जाना । सफलता उन्हों का वरण करती है, जो कठिनाइयों और विघ्न-बाधाओं का धैर्य एवं साहसपूर्वक सामना करते रहते हैं। विजयश्री ऐसे ही धैर्यवान, पुरुषार्थी एवं संकल्पशक्ति-सम्पन्न पुरुषों की प्रतीक्षा करती है। मनुष्य की दृढ़संकल्पशक्ति संसार का सबसे बड़ा चमत्कार है । इसके आधार पर निम्न स्तर पर खड़ा हुआ व्यक्ति भी ऊँचे से ऊँचे स्थान पर पहुँच जाता है ।
हिमालय की सबसे उत्तुंग एवरेस्ट की चोटी पर विजय पाने वाला तेनसिंह गोर्के साधारण स्तर का व्यक्ति था। परन्तु उसकी संकल्पशक्ति प्रबल थी। उसे इससे पूर्व कई बार चोटी पर चढ़ने में असफलता मिली, लेकिन वह पस्तहिम्मत नहीं हुआ। उत्तरोत्तर धैर्य एवं साहस के साथ आगे बढ़ता रहा, उसने अपना प्रयास जारी रखा । इसी कारण उसे अपने कार्य में सफलता मिली।
__वास्तव में सफलताओं के इतिहास में प्रबल संकल्पशक्ति का सबसे बड़ा योगदान है। यही असमर्थों को समर्थ बना सकती है और असफलता की आशंका को सफलता की सम्भावना में परिवर्तित कर सकती है। ऐसी घटनाओं से इतिहास के अगणित पृष्ठ अंकित हैं, जिनमें योग्यता, साधन एवं परिस्थिति अनुकूल न होने पर भी धैर्य, साहस और संकल्पशक्ति का सहारा लेकर किसी महान प्रयोजन के लिए कदम उठाया और उपहासों तथा विरोधों-अवरोधों के बावजूद जब वे अपने निर्धारित सुमार्ग पर चलते ही रहे तो प्रारम्भ में कठिन ही नहीं, असम्भव लगने वाला लक्ष्य सरल होता चला गया।
___आचार्य सम्भूतिविनय के चार शिष्यों में से एक ने सिंह की गुफा में, दूसरे ने सांप की बांबी पर, तीसरे ने कुएँ की ताल पर और चौथे स्थूलभद्र ने अपनी गृहस्थाश्रम की प्रगाढ़ प्रेमिका एवं वासना की पूतली कोशावेश्या की चित्रशाला में चातुर्मास बिताने की अनुमति मांगी। आचार्यश्री ने चारों को उनके मनोनीत स्थल में चातुर्मास बिताने की अनुमति दे दी। चारों शिष्य चातुर्मास पूर्ण करके जब आचार्यश्री की सेवा में सकुशल पहुँचे तो आचार्यश्री ने तीनों शिष्यों की उनकी प्रयोजन-सफलता के लिए एक-एक बार 'दुष्कर' कहा, किन्तु स्थूलभद्रमुनि के लिए तीन बार 'दुष्कर' शब्द का उच्चारण किया जिसका तात्पर्य था, कामवासना के उत्कृष्ट केन्द्र--वेश्यालय में चार-चार मास अपनी भूतपूर्व प्रेमिका के
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