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________________ संकल्पशक्ति के चमत्कार | ५७ महाभारत-संग्राम के अजेय योद्धा भीष्म पितामह अपनी दृढ़ संकल्पशक्ति के बल पर सारा शरीर बाणों से छिंदा रहने पर भी छह महीने तक शरशय्या पर सचेतन पड़े रहे । ऐसे मरणान्त कष्ट के समय भी उनकी चिन्तन की धारा प्रवहमान रही, जिसका ज्वलन्त प्रमाण है - महाभारत शान्तिपर्व | अगर कोई सामान्य व्यक्ति होता तो ऐसी संकटापन्न परिस्थिति में भय के मारे बेहोश हो जाता या मर जाता । संकल्पहीन व्यक्ति जरा-सी चोट लगने पर चिल्लाने लगते हैं । कई लोग जीवन की सामान्य-सी विकट परिस्थिति में रो बैठते हैं, हार खाकर निराश हो जाते हैं । जीवन की सम्भावनाओं का अन्त कर डालते हैं । सत्यव्रती हरिश्चन्द्र अपनी रानी और रोहिताश्व सहित अपना राज्य, महल एवं जीवनयापन की समस्त सुख - सामग्री को त्यागकर परीक्षा की घड़ियों में काशी जैसे अपरिचित क्षेत्र में स्वयं चाण्डाल के यहाँ तथा पत्नीबालक अन्यत्र बिके, तथा उन्होंने मालिक की कठोर झिड़कियाँ एवं यंत्रणाएँ सहीं । इसके पीछे उनकी दृढ़ संकल्पशक्ति ही थी । दृढ़ संकल्पशक्ति मानसिक क्षेत्र का वह दुर्ग है, जिस पर किसी भी बाह्य परिस्थिति, भयजनक कल्पना एवं कुविचारों का प्रभाव नहीं हो सकता । दृढ़ संकल्पशक्तिसम्पन्न व्यक्ति जीवन की भयंकर झंझावातों में भी चट्टान की तरह अटल और अडोल रहता है । उसे कोई भी उलझनें, समस्याएँ या भयानक परिस्थितियाँ विचलित नहीं कर सकतीं । उसके विचार सुलझे हुए, स्थिर और निश्चित होते हैं, वह उन्हें बार-बार नहीं बदलता । कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी वह अपना रास्ता निकालकर आगे बढ़ता रहता है । संकल्प की प्रखरता : सफलता के लिए अनिवार्य मनुष्य की सबसे बड़ी क्षमता उसकी संकल्पशक्ति है । श्रुति कहती है - ' संकल्पमयोऽयं पुरुषः' अर्थात् व्यक्ति संकल्पमय है । उसके पुरुषार्थ की सार्थकता संकल्प की उत्कृष्टता पर निर्भर है। किसी भी कार्य में सफलता के लिए केवल कल्पना करने, इच्छा करने तथा शेखचिल्ली की तरह दिवास्वप्न देखने मात्र से काम नहीं चलता । उसके लिए प्रबल संकल्प होना अनिवार्य है । संकल्प की प्रखरता का लक्षण है - सोच-समझकर लक्ष्य निर्धारित करना, फिर मनोयोगपूर्वक अभीष्ट प्रयोजन के लिए साहसपूर्वक कमर कसना, अपने निर्धारित लक्ष्य तक पहुँच न जाए तब तक बिना रुके, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003188
Book TitleSaddha Param Dullaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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