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________________ ५२ | सद्धा परम दुल्लहा आतंक एवं भय : आत्मविश्वास के घोर शत्रु ___वस्तुतः भय आत्मविश्वास का शत्रु है । बहुत-से लोग सुशिक्षित होते हैं, उनका अध्ययन भी विस्तृत होता है, वे चिन्तनशील भी होते हैं, उनके विचार भी प्रायः सुलझे हुए और स्वस्थ होते हैं, परन्तु वे अज्ञात भय के बोझ तले दबे रहते हैं, वे अपने विचारों को क्रियान्वित करना तो दूर रहा, उनको अभिव्यक्त करने का साहस भी इसलिए नहीं करते कि कहीं उनका सुझाव, या अभिमत उपहास का विषय न बन जाए, उन्हें भरी सभा में लज्जित और तिरस्कृत न होना पड़े। कुछ लोगों को वर्षों के चिन्तन-मनन एवं व्यवहार के पश्चात् निश्चित किये हुए जीवन-सम्बन्धी सिद्धान्तों की सत्यता पर विश्वास होता है कि वे अकाटय हैं और किसी भी सभा आदि में प्रस्तुत करें तो उन्हें कोई ठुकरायेगा भी नहीं, फिर भी भीरुता और हिचकिचाहट उन्हें अपने विचार अभिव्यक्त करने से रोकती है । भय और आतंक मनुष्य के आत्मविश्वास के घातक ही नहीं, उसके अपने जीवन के भी प्राणान्तक बन जाते हैं। जापान के शियोसोकी निकाशी नामक युवक ने सन् १९५३ में इसलिए आत्महत्या कर ली थी कि उसके मन में अणुबम के प्रति अत्यधिक भय बैठ गया था, उसने निश्चय कर लिया कि ऐसी दुनिया में जीना व्यर्थ है, जिसमें अणुबम के प्रयोग की सम्भावना बनी हुई है। ___ कई लोग काल्पनिक भय से घबराकर किसी शुभ कार्य में या सदाचरण में प्रवृत्त नहीं होते। आत्म-विश्वास के स्थायित्व के लिए आशावादी बनिये कुछ लोग एक बार किसी कार्य में असफल होकर या उस कार्य में विघ्न-बाधाएँ आने पर आत्मविश्वास को छोड़ बैठते हैं, वे हतोत्साह होकर उस कार्य को भी छोड़ बैठते हैं । अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए निराश होकर अपनी वर्तमान दमघोंट परिस्थिति में ही बाहर से सन्तुष्ट किन्तु मन में असन्तुष्ट होकर जीते हैं। एक ग्रेजुएट युवक मध्यमवर्गीय परिवार में पैदा हुआ, बड़ा ही साहसी, महत्वाकांक्षी और आत्मविश्वासी है, विद्या-बुद्धि से सम्पन्न है, पहले से अब ज्यादा अनुभवी और दूरदर्शी है, किन्तु वह वर्तमान परिस्थिति से असन्तुष्ट एवं निराश होकर उत्साहहीन हो गया, उसे जीवन में अब कोई आकर्षण नहीं रहा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003188
Book TitleSaddha Param Dullaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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