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________________ आत्मविश्वास की अजेय शक्ति | ५१ मनुष्य अपनी शक्ति के एक तुच्छ अंश से ही काम लेता है और शेष बड़ा अंश उपयोग में ही नहीं लाता। बहुत से लोग अपनी बौद्धिक शक्तियों के केवल पाँचवे अंश का उपयोग आत्मविकास में करते हैं, शेष ६५ अंश का या तो अपव्यय कर देते हैं, या फिर शेष बौद्धिक शक्ति का उपयोग ही नहीं करते । यदि वे लोग आत्मविश्वास के बल पर अधिकतर बौद्धिक शक्ति अपनी दशा को सुधारने, अर्थात्-कुछ सीखने और आगे बढ़ाने में लगाएँ, अपनी बौद्धिक दरिद्रता, साधनहीनता और अल्पज्ञता पर संतोष न करके उनसे मुक्त होने के लिए सचेष्ट हो, अपने बाहुबल एवं मनोबल पर विश्वास करने के अभ्यस्त हो जाएँ, अपनी वास्तविकता से परिचित हो जाएँ तो उन्हें आत्मिक उन्नति के शिखर पर पहुँचने में क्या देर लग सकती है ? याद रखिए, जो अपनी शक्तियों के प्रति अविश्वासी और अनभिज्ञ बनकर उनसे काम नहीं लेते, उनकी इन्द्रिय, तन, मन, वचन और बुद्धि की उन शक्तियों में उन मशीनों की तरह जंग लग जाता है, जो उपयोग में नहीं लाई जातीं। आत्मविश्वास में बाधक ये परियाँ साथ ही यह भी जान लीजिए कि अकर्मण्यता, आलस्य और विलासिता की परियाँ, जो मार्ग में मिलती हैं और रुकने और विश्राम करने का परामर्श देती हैं, अपने यौवन और सौन्दर्य से आपका मन बहलाने का सुझाव देती हैं, ये सुख-सुविधा की नींद में सुलाने वाली परियाँ आपकी हितचिन्तक नहीं हैं, ये आपके आत्मविश्वास में रोड़ा अटकाने वाली शत्रु हैं, इनके मायाजाल में न फैसिये। और ये झठी शंकाओं और बहमों के दैत्य, जिनके कोई सिर-पैर नहीं है, जिनके आतंक से आपके हाथ-पैर शिथिल हो जाते हैं, तथा जिनकी डरावनी आवाजों से आपके होश उड़ जाते हैं, उनकी कल्पित आवाजों से न डरिये और न आतंकित होइए । इनका अस्तित्व तभी तक है जब तक आप अपने पर-अपनी शक्तियों पर विश्वास नहीं करते, अकारण ही भयभीत होते हैं। प्रश्नव्याकरण सूत्र में स्पष्ट कहा है “जो डरता है, उसे भयावने भय के भूत डराते हैं।" इनसे बिलकुल भयभीत न होकर, इन्हें मत समझकर आत्मविश्वास के साथ आगे कदम बढ़ाते जाइए। ऐसा करने से शीघ्र ही आप पर यह भेद खुल जायेगा कि दुनिया की कोई शक्ति आपका रास्ता नहीं रोक सकती। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003188
Book TitleSaddha Param Dullaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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