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________________ आत्मविश्वास की अजेय शक्ति ४६ सामर्थ्य पर भरोसा होता है, वही दृढ़ आत्मविश्वासी होता है। वह दूसरों का मुंह नहीं ताकता, दूसरों के आश्रय से या दूसरों की प्रतीक्षा करके नहीं चलता। वह प्रायः दूसरों के सहयोग की अपेक्षा भी नहीं रखता। वह अकेला ही अपनी शक्ति के भरोसे चल पड़ता है । ___डॉ. राममनोहर लोहिया बलिन विश्वविद्यालय में भर्ती हुए। वहाँ उन्होंने अर्थशास्त्र विषय चुना। किन्तु कठिनाई यह थी कि उन्हें पढ़ाने वाले प्राध्यापक प्रो० बर्नर जोम्बार्ट केवल जर्मन भाषा में ही पढ़ाते थे, और लोहिया जर्मन भाषा नहीं जानते थे। जब प्रो० जोम्बार्ट ने बताया कि मैं अंग्रेजी नहीं जानता, तब लोहिया ने उनसे तीन महीने का समय मांगा। लोहिया ने अपने दृढ़ संकल्प और आत्मविश्वास के बल पर तीन महीने में जर्मन भाषा का ज्ञान प्राप्त कर लिया। तीन महीने बाद जब वे प्रो० जोम्बार्ट के पास गये और धाराप्रवाह जर्मन भाषा में बातचीत करने लगे तो वह आश्चर्यचकित रह गये। प्रो० जोम्बार्ट ने अपने शिष्य लोहिया को गले लगाते हुए कहा-"राममनोहर ! तुमने यह सिद्ध कर दिय कि दृढ़ संकल्प और आत्मविश्वास के बल के आगे कुछ भी असम्भव नहीं।" आत्मविश्वासी क्षुद्र से महान् बन सकता है वस्तुतः आत्मविश्वासी मनुष्य चाहे तो सर्वसमर्थ हो सकता है । जैन धर्म का कहना है-'अप्पा सो परमप्पा' मनुष्य आत्मा से परमात्मा, क्षद्र से महान् और अणु से विभु तथा नर से नारायण बन सकता है, बशर्ते कि उसमें अपनी शक्तियों और क्षमताओं का बोध हो । हरिकेशबल चाण्डाल जाति में उत्पन्न, निर्धन, अपढ़, असंस्कारी और शरीर से बेडौल तथा कालाकलूटा व्यक्ति था, किन्तु वह अपने दृढ़ आत्मविश्वास के बल पर आगे बढ़ा, अपनी आत्मशक्तियों को पहचान कर उसने तप, संयम में लगा दी। फलतः वह स्वयं तो वीतरागता और समता के उच्च शिखर पर पहुँचा ही, अनेक जात्यभिमानो ब्राह्मणों को भी प्रतिबोध देकर सन्मार्ग पर लगाया ।। निष्कर्ष यह है कि आत्मविश्वास अपनी शक्तियों, योग्यता और क्षमताओं के बोध पर निर्भर है। आत्मविश्वास के लिए सर्वप्रथम आत्मपरिचय आवश्यक उर्दू के प्रसिद्ध कवि डॉ. इकबाल ने ठीक ही कहा है अपनी असलियत से हो आगाह, ऐ गाफिल कि तू । कतरा है, लेकिन मिसाले बहरे बेपायाँ भी है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003188
Book TitleSaddha Param Dullaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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