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________________ ४८ | सद्धा परम दुल्लहा ममक्ष शिकागो (अमेरिका) आदि विदेशों में सर्वप्रथम निराशाजनक वातावरण था । वहाँ के क्रिश्चियन चर्चों के पादरीगण इनका सिक्का अपने देश में जमने देना नहीं चाहते थे। इनकी मिथ्या आलोचना एवं निन्दा करके वे इन्हें हतोत्साह करना चाहते थे, किन्तु आत्मविश्वास के धनी स्वामी विवेकानन्द ने अपना उत्साह नहीं छोड़ा। उन्होंने उन्मुक्त हृदय से भारतीय दर्शनों, विशेषतः वेदान्त दर्शन पर इतने सुन्दर ढंग से विवेचन किया कि अमरीका की जनता उन पर मुग्ध हो गई। सभी उनकी भाषण शक्ति का लोहा मानने लगे । स्वामी विवेकानन्द कहा करते थे—“आत्मविश्वास से बढ़कर मनुष्य का कोई मित्र नहीं। आत्मविश्वास ही भावी उन्नति की प्रथम सीढ़ी है।" आत्मविश्वास के बल पर साधारण निर्धन व्यक्ति भी उच्च पद पर _ भारत के भूतपूर्व खाद्यमन्त्री स्व. श्री रफी अहमद किदवई महात्मा गाँधी के परम भक्त थे। उनके जीवनवृत्त के अध्ययन करने से यह स्पष्ट हो जाता है कि आत्मविश्वास ही उनकी पूंजी थी। जिन दिनों अनाज पर भारत में कन्ट्रोल था। किदवई साहब ने अनाज पर कन्ट्रोल के कारण जमाखोरी, संग्रहवृत्ति, कालाबाजारी, भ्रष्टाचार, बेईमानी आदि बढ़ते देखकर अन्न पर नियन्त्रण (कन्ट्रोल) समाप्त कर दिया और गली-गली में जरूरतमन्द लोगों को यथोचित मात्रा में अनाज वितरित करवाया था। पं० नेहरू ने उनके आत्म-विश्वास के महत्व को स्वीकार किया था। इतना ही नहीं, उन्हे महान नेता, कुशल प्रशासक एवं असाधारण व्यक्ति माना था। आत्मविश्वास के बल पर साधारण से साधारण, निर्धन, साधनहीन एवं अशिक्षित व्यक्ति भी महान् उच्च पद पर पहुँच सकता है । दाजिलिंग निवासी गरीब नेपाली तेनसिंह गोर्के को हिमालय की सबसे ऊँची अजेय चोटी एवरेस्ट पर चढ़ाई करने में विजय प्राप्त करने का सौभाग्य मिलाकेवल आत्मविश्वास के कारण ही । उसने निर्धन और निरक्षर होने के बावजूद बचपन से ही एवरेस्ट की चोटी पर चढ़ने का संकल्प कर लिया था। इसे मूर्तरूप देने के लिए उसने एवरेस्ट विजय के प्रत्येक अभियान में भाग लिया और एक साधारण शेरपा पद गे प्रारम्भ करके वह एक महान् पर्वतारोही एवं एवरेस्ट-विजेता बन गया। आत्मविश्वासी परमुखापेक्षी नहीं होता जिस मनुष्य को अपनी योग्यता पर तथा अपनी शक्ति, क्षमता और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003188
Book TitleSaddha Param Dullaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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