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________________ आत्मविश्वास की अजेय शक्ति | ४७ के कार्यकलाप, जीवन-व्यवहार बातचीत एवं हावभाव आदि में अद्भुत सामर्थ्य भर देता है । वह मनुष्य की बिखरी हुई शक्तियों को संगठित कर देता है । और उन्हें एक ही दिशा में संलग्न कर देता है। ___महात्मा गाँधी का यह दृढ़ विश्वास था कि आत्मविश्वास ही हमारी जीवन नैया को तूफानी सागर में भी खेता है। आत्मविश्वाप का चमत्कार वर्तमान युग का एक राजनैतिक चमत्कार-भारत को स्वतन्त्रता प्राप्ति भी कुछ दृढ़संकल्पी लोगों के आत्मविश्वास का ही सुपरिणाम है। किसी को विश्वास ही नहीं होता था कि जिस ब्रिटिश सरकार के राज्य में सूर्य अस्त नहीं होता, उससे सत्य, अहिंसा, सत्याग्रह के शान्तिपूर्वक अहिंसक शस्त्रों से लड़कर स्वराज्य प्राप्त किया जा सकेगा और ब्रिटेन जैसी प्रचंड शक्ति को भारत छोड़ने पर बाध्य किया जा सकेगा । परन्तु महात्मा गाँधो के हृदय में अटल आत्मविश्वास भरा था, उनका अपने सिद्धान्तों, अहिंसक सत्याग्रह के प्रयोगों और साध्य-साधन-साधकशुद्धि पर अखण्ड विश्वास था। उसी के बल पर वह अन्य अनेक लोगों को अपना समर्थक और अनुयायी वनाने में सफल हए। परिणामतः देश के कोने-कोने में स्वातन्त्र्य-संग्राम और राष्ट्रीय जागृति की लहर दौड़ गई है और अन्ततः सन् १६४७ में ब्रिटिश शासन को विवश होकर भारत पर से अपनी प्रभुसत्ता हटानी पड़ी। आत्मविश्वासी असफलता की कल्पना नहीं करता आत्मविश्वासी पुरुष जब किसी कार्य को हाथ लगाता है, अथवा किसी अभियान को प्रारम्भ करता है तो वह अपने मन-मस्तिष्क को असफलता सम्बन्धी मिथ्याधारणाओं का शिकार नहीं बनाता। उसकी यह दृढ़ मान्यता होती है कि आत्मविश्वास के बिना सफलता की कल्पना ही नहीं की जा सकती। इस प्रकार आत्मविश्वासी स्वयं को सदैव विजयी ही देखता है। उसका यह दृढ़ निश्चय होता है कि सफलता मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है । विश्व की कोई भी शक्ति मुझे उससे वंचित नहीं कर सकती। अतः आत्मविश्वास मनुष्य को निर्भय, लक्ष्य के प्रति अचल एवं कार्य के प्रति कर्मठ बनाता है। वह उसके हृदय में आशादीप को सदा प्रज्वलित रखता है, उसका उत्थान करता है, उसे गति प्रदान करता है । स्वामी विवेकानन्द में आत्मविश्वास कूट-कूट कर भरा था। उनके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003188
Book TitleSaddha Param Dullaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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