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________________ ४६ । सद्धा परम दुल्लहा बारहवीं भिक्षप्रतिमा की साधना करने को उद्यत हो गया। भगवान ने गजसुकुमार मुनि को सावधान कर दिया था कि दिव्य, मानूष या तिर्यंचकृत कोई भी उपसर्ग (उपद्रव) उस पर आ सकता है, किन्तु अगर उस समय समभावपूर्वक आत्मनिष्ठा रखकर सहन कर लिया तो तुम अपने लक्ष्य को सिद्ध कर सकोगे। जन्म-जरा-मरणादि दुःखों से सदा के लिए मुक्त-सिद्ध-बुद्ध बन सकोगे, आत्मा की सम्पूर्ण ज्ञानादि अनन्त शक्तियाँ उपलब्ध कर सकोगे। गजसुकुमार मुनि का यह पूर्ण आत्मविश्वास ही था, कि जिस समय सोमल ब्राह्मण ने उनके मस्तक पर खैर के धधकते अंगारे उड़ेल दिये, ऐसी तीव्र वेदना के समय भी वे एकमात्र आत्मनिष्ठ, आत्मा के प्रति अचल विश्वस्त, आत्मा में तन्मय हो गए थे। देहाध्यास से ऊपर उठ गए थे। यह उनके आत्मविश्वास का ही चमत्कार था कि वे एक ही दिन में सिद्ध-बुद्धमुक्त अनन्त चतुष्टय-सम्पन्न बन गए थे। आत्मविश्वासी की अलेध शक्ति __वस्तुतः आत्मविश्वास मनुष्य को दृढ़ता और धीरता की प्रतिमूर्ति बना देता है ! जिस मनुष्य को अपनी स्थिति एवं विचारों की सत्यता, एवं वस्तुस्वरूप का अटल विश्वास होता है, और जो यह समझता है कि वह कठिनतम कार्य को भी पा कर दिखाने की सामर्थ्य रखता है, वह अपने मन्तव्य की सत्यता को सिद्ध करने के लिए बड़े से बड़ा खतरा मोल लेने से नहीं डरता । उसे न तो मिथ्याधारणाओं के प्रेत भयभीत कर सकते हैं, और न ही शंकाओं के भूत डरा सकते हैं। उसके मार्ग में विपत्तियों के पहाड़ खड़े हों, तो भी वह कदम पीछे नहीं हटाता, बल्कि पहाड़ों को भी पथ देने पर बाध्य कर देता है। वह अर्हन्नक श्रावक के आत्मविश्वास का ही परिणाम था, कि समुद्रयात्रा के समय उसके पोत पर एक देव ने आकर उसे डराया, धमकाया, आत्मविश्वास से विचलित करने का प्रयत्न किया, उसके साथी व्यापारियों को भड़काया, यही नहीं, उसका जहाज उलटाने और सबको समुद्र में डुबोने तक का संकट उपस्थित कर दिया, किन्तु अर्हन्नक के आत्मविश्वास की अजेय शक्ति के आगे देव को भी झकना पड़ा। वस्तुतः आत्मा में अलौकिक शक्तियाँ हैं। आत्मविश्वास मात्र से जीवन में शक्ति एवं स्फूर्ति का संचार होता है । आत्मविश्वास के चमत्कार से मनुष्य का व्यक्तित्व चमक उठता है। उसमें विलक्षण क्षमता का प्रादुर्भाव हो जाता है । आत्मविश्वास मनुष्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003188
Book TitleSaddha Param Dullaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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