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आत्मविश्वास की अजेय शक्ति | ४५
दूध नहीं पिया | दूध को गन्ध से चींटियाँ उसके शरीर पर चढ़ गईं, उसके शरीर को नोंच-नोंच कर छलनी-सा बना दिया, मगर चण्डकौशिक ने क्षमा और समता रखी, कोई भी प्रतीकार न किया । उसे अपनी आत्मा पर दृढ़ विश्वास हो गया था कि मुझ में क्षमा, शान्ति, समता और करुणा आदि की शक्ति निहित है, फिर मैं क्रोध, वैरभाव, विषमता और क्रूरता क्यों बरसाऊँ ? इसी के फलस्वरूप चण्डकौशिक समाधिपूर्वक मरकर देवलोक में गया ।
यह भगवान् महावीर के आत्मविश्वास का ही प्रभाव था कि चण्डकौशिक सर्प की योनि में क्षमाशील साधु-सा बन गया था । वस्तुतः आत्मविश्वासी अपने जीवन को तो ऊँचा उठाता ही है, अपने सम्पर्क में आने वाले अन्य जिज्ञासुओं को भी ऊपर उठने के लिए प्रेरित करता है ।
आत्मा स्वयं पूर्ण है, और अपने आप में अनन्त शक्तियों का भण्डार है । आत्मविश्वासी स्वयं को क्षुद्र, पामर, दीन-हीन या अभागा नहीं मानता, वह स्वयं को अनन्तशक्तिमान् परमात्मा का पुत्र या उनका अनुयायी मानता है । उसका यह पक्का विश्वास होता है कि "जो आत्मशक्तियाँ वीतराग परमात्मा में विराजमान हैं, वे ही मेरी आत्मा में हैं, सिर्फ उन शक्तियों को प्रकट करने भर की देर है । मैं भी सच्चे माने में अनन्त परमात्म शक्तियों कापुंज हूँ | मेरे रोम-रोम में परमात्मा के अणु-परमाणु अनुस्युत हैं । शरीर का नाश भले ही हो जाए, आत्मा का नाश कदापि नहीं होता । आत्मा अजर, अमर, अविनाशी, अच्छेद्य, अभेद्य, अदाह्य, अशोष्य है । ज्ञान, दर्शन, सुख एवं वीर्य ही आत्मा के निजी स्वभाव हैं ।"
आत्मविश्वासी संकटों से घबराता नहीं ऐसा आत्मविश्वास जिसके हृदय में बस जाता है, फिर वह व्यक्ति बड़े से बड़े कष्ट, संकट, यातना या पीड़ा से घबराता नहीं ।
गजसुकुमार राजकुमार था, अत्यन्त सुकुमार था, सुख-सुविधाओं में पला हुआ था, परन्तु भगवान् नेमिनाथ की वाणी सुनकर जिस दिन उसमें प्रबल आत्मविश्वास जगा, उसने मन ही मन निश्चय कर लिया कि वीतराग परमात्मा नेमिनाथ जब कहते हैं कि मेरी आत्मा और तुम्हारी आत्मा में कोई अन्तर नहीं । सबमें अनन्त आत्मिक शक्तियाँ विद्यमान हैं, और आत्मा अजर-अमर अविनाशी है तो फिर मैं क्यों नहीं अपनी आत्मशक्तियों को प्रकट करू ? उसने भगवान् नेमिनाथ से मुनिदीक्षा ग्रहण कर ली और उसी दृढ़ आत्मविश्वास के बल पर वह उसी दिन महाकाल श्मशान में जाकर
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