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४४ सद्धा परम दुल्लहा
भगवान् महावीर ने जनता की कायरतापूर्ण एवं भय-जनक बातें सुनीं, किन्तु उनकी बातें उनके आत्मविश्वास को डगमगा न सकी : बल्कि उनमें आत्मविश्वास, उत्साह और स्फूर्ति का अत्यधिक संचार हुआ। उन्होंने अपनी बिखरी हुई समस्त शक्तियों को आत्मविश्वास के बल पर केन्द्रित और संगठित किया और चण्डकौशिक को अपनी अमृतमयी वात्सल्य दृष्टि से प्रतिबोध करने की दिशा में लगा दिया। वे निर्भय होकर प्रसन्नतापूर्वक चण्डकौशिक विषधर की बांबी पर जाकर खड़े हो गए । सहसा चण्डकौशिक अपनी बांबी से निकला और धष्टतापूर्वक निर्भीक होकर खड़े वर्द्धमान महावीर के अंगूठे को डस लिया । परन्तु यह क्या, लाल रक्त के बदले अंगूठे से दूध की धारा बह निकली । चण्डकौशिक आश्चर्यमग्न होकर निश्चल और निर्भय वात्सल्यमूर्ति भ० महावीर को देखने लगा । सोचते-सोचते उसे अपने पूर्वजन्म का स्मरण हो आया । जाति-स्मरणज्ञान के प्रकाश में उसने देखापूर्वजन्म में मैंने ऐसे महान त्यागी श्रमण को देखा है। मैं भी इसी प्रकार का साधु था, किन्तु मैंने अपने शिष्य पर भयंकर क्रोध किया, अहिंसा की शक्ति पर विश्वास खो बैठा। बस, उसी समय खंभे से सिर टकराने से मेरो मृत्यु हई और मैं मरकर सर्प की योनि में आया।
भगवान महावीर ने उसका आत्मविश्वास बढ़ाते हए कहा--- "चण्डकौशिक ! अब भी समझ जाओ। तुम्हारी आत्मा तो वही है, केवल शरीर बदला है। अब भी तुम आत्मविश्वास रखकर अपनी आत्मशक्तियों को हिंसा के बदले अहिंसा की ओर, क्रोध के बदले क्षमा, तथा क्रूरता के बदले वत्सलता की ओर और जहर उगलने के बदले अमृतवृष्टि करने में लगा दो, बस तुम्हारा बेड़ा पार हो जाएगा। अपनी आत्मशक्ति पर विश्वास रखो।" आत्मविश्वासी को दूसरे पर अचूक प्रभाव
भगवान महावीर की आत्मविश्वासपूर्वक कही हुई बात का चण्डकौशिक पर अचूक प्रभाव पड़ा। उसी दिन से चण्डकौशिक ने मन ही मन भगवान के समक्ष संकल्प किया कि "मैं अब किसी को नहीं सताऊंगा, कोई भी मुझ पर कुछ भी प्रहार करे, सताये, या मारे-काटे मैं उसके प्रति रोषद्वेष नहीं करूंगा, क्षमाभाव धारण करूंगा।" उसी समय उसने अपना मुह बांबी के अन्दर डाल लिया, सिर्फ पूंछ बाहर रही। आने-जाने वाले पथिक चण्डकौशिक को शान्त देखकर उसके पीने के लिए प्याले में दूध रखने लगे, कोई देव समझकर उसके शरीर पर दूध चढ़ाने लगे। परन्तु चण्डकौशिक ने
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