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________________ आत्मविश्वास की अजेय शक्ति | ४३ सहायता से अजेय दुर्ग जीते जा सकते हैं; दुर्गम अटवियों, पर्वतों एवं मरुभूमियों को पार किया जा सकता है । सुदर्शन के दृढ़ आत्मविश्वास के आगे आसुरी शक्ति परास्त राजगृह का श्रमणोपासक सुदर्शन आत्मविश्वास से सम्पन्न व्यक्ति था । अपने दृढ़ आत्मविश्वास के कारण ही उसे मानव हत्यारे अर्जुनमाली के आतंक का, उसके घुमाते हुए भारी भरकम मुद्गर का कोई डर नहीं हुआ । उसे अपनी अध्यात्म शक्ति पर अटल विश्वास था । यही कारण था कि अर्जुनमाली की आसुरी शक्ति उसके समक्ष परास्त हो गई । अर्जुनमाली के हाथ से मुद्गर गिर पड़ा और वह भी धड़ाम से बेहोश होकर धरती पर गिर पड़ा। यह था आत्मविश्वास का अद्भुत चमत्कार । आत्मविश्वास : अनन्त शक्तियों का भण्डार प्रसिद्ध अंग्रेज लेखक स्वेट मार्डन ने लिखा है "आत्मविश्वास की मात्रा हममें जितनी अधिक होगी, उतना ही हमारा सम्बन्ध अनन्त जीवन और अनन्त शक्ति के साथ गहरा होता जाएगा । नि सन्देह प्रत्येक परिस्थिति में मनुष्य का एकमात्र साथी उसकी आत्मशक्ति है । उसकी शारीरिक, मानसिक और बौद्धिक शक्तियाँ आत्मविश्वास के इशारे पर नाचती हैं । निःसन्देह आत्मविश्वास अपने उद्धार का एक महान् सम्बल है ।" श्रमण भगवान् महावीर जिन दिनों केवलज्ञानी नहीं बने थे, छद्मस्थ अवस्था में थे, उनमें आत्मविश्वास कूट-कूट कर भरा था । उन्होंने एक बार चण्डकौशिक सर्प की भयानकता के बारे में सुना कि वह किसी भी मनुष्य या पशु-पक्षी को जिंदा नहीं छोड़ता, अपनी दृष्टि से देखकर ही उन पर जहर छोड़ देता है । लोग चण्डकौशिक सर्प को अपनी ओर आते देखकर भय के मारे ही मर जाते थे । आत्मविश्वासी भगवान् महावीर ने सोचाTusaौशिक में विष है और मेरे में वात्सल्य का अमृत है । अमृतमयी आत्मशक्ति के समक्ष चण्डकौशिक की विषमयी शक्ति अवश्य ही प्रभावहीन हो जाएगी। वे दृढ़ निश्चय करके चण्डकौशिक के स्थान को ओर चल पड़े । बहुत-से लोगों ने उन्हें देखकर रोका और टोका - "अरे महात्मन् ! इधर मत जाइए, इधर भयानक विषधर चण्डकौशिक रहता है, वह आपको देखते ही विषाक्त करके मार डालेगा । क्यों अपनी मृत्यु को बुला रहे हो, बाबा ! "" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003188
Book TitleSaddha Param Dullaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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