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________________ ३६ | सद्धा परम दुल्लहा "चत्तारि लोगुत्तमा-अरिहंता लोगुत्तमा, सिद्धा लोगुत्तमा, साहू लोगुत्तमा, केवलिपण्णत्तो धम्मो लोगुत्तमो।" __ अर्थात्-- इस विश्व (लोक) में चार उत्तम हैं-अरिहन्त या अर्हन्त लोक में उत्तम हैं, सिद्ध (मुक्त) लोक में उत्तम हैं, साधु लोक में उत्तम हैं, एवं केवली (वीतराग सर्वज्ञ) द्वारा प्रज्ञप्त धर्म लोक में उत्तम है।" ये ही चार सत्य हैं, शिव (मंगल) हैं, सुन्दर (उत्तम) हैं और ये ही चार शरण्य हैं। इस प्रकार इन चारों सर्वश्रेष्ठ (लोकोत्तम) तत्त्वों के प्रति अटूट आस्था रखना, असीम भक्ति होना श्रद्धा का फलितार्थ है। देव में अरिहन्तों और सिद्धों का, गुरु में आचार्य, उपाध्याय एवं साधु-साध्वीगण का, तथा धर्म में सम्यग्ज्ञान-दर्शन-चारित्ररूप अथवा श्र त-चारित्ररूप वीतराग सर्वज्ञ तीर्थंकरों द्वारा प्ररूपित धर्म का समावेश हो जाता है। श्रद्धा का प्रयोजन जहाँ भी आत्म साक्षात्कार--परमात्म-साक्षात्कार या लक्ष्य-प्राप्ति की विवेचना हुई, वहाँ श्रद्धा ही प्रमुख मानी गई। श्रद्धातत्त्व के विकास और अतिरेक द्वारा ही परमात्मा या शुद्ध आत्मा की अनुभूति का पाना सम्भव होता है। यह सत्य है कि इसी श्रद्धा की धुरी पर अध्यात्म-साधना अथवा मोक्षमार्ग (धर्म) की साधना चलती है। आत्म-कल्याण चाहने वाले तथा मोक्ष-प्राप्ति के इच्छुक साधकों के लिए श्रद्धा-शक्ति का उभार एवं आलम्बन अतीव आवश्यक है । इसके बिना उस महान् लक्ष्य को प्राप्त नहीं किया जा सकता। सिद्धान्त (तत्त्वज्ञान) और व्यवहार की दोनों पटरियों पर चलकर जब आस्था की यह गाड़ी आत्मा, परमात्मा, लोक-परलोक, पुण्य-पापसंवर-निर्जरा, बन्ध-मोक्ष, जीव-अजीव आदि तत्त्वों की सत्यता, तथा जीवन के उत्तम दर्शन एवं देव-गुरु-धर्म की भक्ति के क्षेत्र में प्रविष्ट होती है, तब वह सत्श्रद्धा कहलाती है । अपनी आत्मा में निहित परमात्म तत्त्व को देखने, उसका साक्षात्कार करने एवं उसे प्राप्त करने के उपाय के रूप में मनीषियों ने सर्वप्रथम इसी सत्श्रद्धा का आश्रय लिया है । इसीलिए वैदिक ऋषियों ने कहा है 'श्रद्धया सत्यमाप्यते' श्रद्धा से सत्य प्राप्त किया जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003188
Book TitleSaddha Param Dullaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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