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________________ ४ आत्मिक प्रगति की जननी : सत्श्रद्धा आत्मिक प्रगति का सर्वोत्तम साधन : श्रद्धा जीवन को किसी निर्दिष्ट सांचे में ढाल देने वाली सबसे प्रबल एवं उच्चस्तरीय शक्ति श्रद्धा है । यह अन्तःकरण की भव्य भूमि में उत्पन्न होकर मनुष्य के समग्र जीवन को हरा-भरा एवं सरसब्ज बना देती है । भौतिक समृद्धि स्थूल साधनों से उपलब्ध होती है, जबकि आत्मिक सिद्धि एवं समृद्धि के लिए कुछ अन्य साधन होते हैं । उनमें सर्वोत्तम साधन है- श्रद्धा । उपनिषद्कारों ने श्रद्धा का निर्वचन करते हुए कहा है 'श्रत् = सत्यं दधातीति श्रद्धा' अर्थात् - जो अन्तःकरण से प्रसूत एवं प्रतीत सत्य को धारण करे, वह श्रद्धा है | श्रद्धा का अर्थ और व्याख्या अन्तःकरण की उत्कृष्टता को श्रद्धा के नाम से पहचाना जाता है | उसका व्यावहारिक रूप है- भक्ति । बोलचाल में तो दोनों का उपयोग पर्यायवाची शब्दों के रूप में होता है । परन्तु दोनों में कुछ अन्तर तो है ही । श्रेष्ठता के प्रति अटूट आस्था अथवा असीम प्यार के रूप में उसकी व्याख्या की जा सकती है । चार उत्कृष्ट तत्त्वों के प्रति श्रद्धा जैनदर्शन में देव, गुरु और धर्म ये तीन उत्कृष्ट श्रद्धेय माने गये हैं । इन्हीं को मांगलिक पाठ में 'उत्तम' शब्द से प्रयुक्त किया गया है ( ३५ ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003188
Book TitleSaddha Param Dullaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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