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________________ २८ | सद्धा परम दुल्लहा परिज्ञात होता है कि श्रद्धा और प्रज्ञा ये दोनों शब्द एक ही अर्थ, एक ही भाव को अभिव्यक्त करते हैं। । श्रद्धा को प्राकृत भाषा में सद्धा कहते हैं। इसमें दो शब्द हैं-- सद्+धा। सद् -- अर्थात् सम्यक्, सत्य धा= अर्थात् धारणा, धृति सत्य में धृति व धैर्य रखना। अथवा सत्य की धारणा करना यह है सद्धा का अर्थ। अब देखिए, प्रज्ञा का अर्थ---- प्र= अर्थात् प्रकृष्ट या निर्मल, श्रेष्ठ । ज्ञा = अर्थात् ज्ञान, बुद्धि भावना । हेय उपादेय का विवेक करने वाली निर्मल श्रेष्ठ बुद्धि को प्रज्ञा कहा जाता है। हेयोपादेय विवेचिका बुद्धिः प्रज्ञा (उत० ७ वृत्ति योगदर्शनकार आचार्य पतंजलि ने शुद्ध प्रज्ञा को ऋतंभरा प्रज्ञा कहा है । ऋतंभरा तत्र प्रज्ञा-- (१-४८) इस सूत्र की व्याख्या में कहा गया है.---"ऋतं सत्य बिति, कदाचिदपि न विपर्येणाच्छद्यते सा ऋतंभरा प्रज्ञा" (भोजवृत्ति)। अर्थात् जो कभी विपर्यय विपरीत ज्ञान से आच्छादित न हो वह सत्य की धारणा करने वाली बुद्धि ऋतंभरा प्रज्ञा है ।। इस प्रकार हम देखते हैं सद्धा और प्रज्ञा का एक ही अर्थ सिद्ध हो गया, वह है सत्य की धारणा। तथापि पता नहीं क्यों हमारे बहुत से महामनीषी आधुनिकता का चोगा पहनकर अपने आपको प्रज्ञावाद का पक्षधर होने का स्वर बुलन्द कर रहे हैं। ‘पन्ना समिक्खए धम्म' का नारा उसी तरह लगाया जा रहा है जैसे आज के पूजीपति समाजवाद का नारा बुलन्द करते हैं । प्रज्ञा के नाम पर श्रद्धा और शास्त्र का उपहास किया जा रहा है और जो सज्जन श्रद्धालु हैं उन्हें पोंगापंथी कहकर उनकी मजाक उड़ाई जा रही है तथा स्वयं को क्रान्तिकारी होने का वज्र आघोष कर रहे हैं; पर वे महामनीषी यह क्यों नहीं सोचते कि जिन शास्त्रों की दुहाई देकर पन्ना समिक्खए धम्मं का डि म डिमनाद किया जा रहा है वे शास्त्र भी तो उसी श्रद्धा पर आधृत है । यदि श्रद्धा नहीं है तो उन शास्त्रों में और आज के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003188
Book TitleSaddha Param Dullaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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