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सद्धा परम दुल्लहा
कुछ शब्द देखने और सुनने में एक समान प्रतीत होते हैं किन्तु उनका अर्थ बिल्कुल ही भिन्न और विपरीत निकलता है । जैसे सबल और शबल । सबल का अर्थ है बलवान और शबल का अर्थ है चितकबरा |
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कुछ शब्द देखने और सुनने में भिन्न और विपरीत लगते हैं जैसे— श्रद्धा और प्रज्ञा । श्रद्धा का अर्थ है विश्वास और प्रज्ञा का अर्थ है बुद्धि । पर जब हम शब्दों की गहराई में उतरते हैं तो दोनों ही शब्द एक ही बिन्दु पर मिलते से प्रतीत होते हैं । यह है शब्दों का खेल ।
बहुत से व्यक्ति अपने आपको प्रज्ञावादी बताते हैं । तर्कवादी ख्यापित करते हैं । वे गर्व के साथ अपना सिर उन्नत कर कहते हैं कि हम पुराणपंथी या शास्त्रवादी नहीं हैं। अपितु हम बुद्धि और तर्क में विश्वास रखते हैं। हर बात को परीक्षण प्रस्तर पर कस करके ही मानते हैं । जो बात तर्क की कसौटी पर खरी नहीं उतरती वह हमें स्वीकार्य नहीं है ।
तो कितने ही श्रद्धा को प्रमुखता देने वाले महानुभावों का अभिमत है, हम तर्क को नहीं मानते और वे समय-समय पर तर्क की धज्जियाँ उड़ाने में गौरव का अनुभव करते हैं । इस प्रकार मैं देख रहा हूँ दोनों ही ओर शब्दों की गेंद फेंकी जा रही है और वे खिलाड़ियों की भाँति शब्दों से खेल रहे हैं ।
पर जब हम चिन्तन की गहराई में जाकर देखते हैं तो सहज ही
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