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सफलता का मूलमंत्र : विश्वास | १५
कुछ जानकार हो जाता है। वह अपने पिता, भाई, बहन, चाचा, मामा आदि अन्य सम्बन्धियों को जान जाता है और उनकी बात पर विश्वास करके चलता है। इस अवस्था में उसे लकड़ी का घोड़ा, हाथी या लोहे की मोटर, रेलगाड़ी आदि खिलौने देकर पहचान कराई जाती है कि यह घोड़ा है, यह हाथी है, यह मोटर है, यह रेलगाड़ी है आदि । बालक अपने सम्बन्धियों पर विश्वास करके उन खिलौनों को ही असली घोड़ा-हाथी आदि मानने लग जाता है। आगे चलकर असली हाथी-घोड़े आदि को देखकर उनका विश्वास परिपक्व हो जाता है।
बाल्यकाल पार करने के बाद किशोरावस्था में आता है, तब वह पाठशाला में जाने लगता है। वहाँ अध्यापकों के द्वारा किशोर को जो कुछ बताया जाता है, वह उस पर विश्वास रखकर सीखता है, अपनी ज्ञानवृद्धि करता है। अगर वह अपनी पाठशाला में अध्यापक पर विश्वास न रखे तो उसका शिक्षणकार्य एक दिन भी आगे नहीं बढ़ सकता। अध्यापक के द्वारा सिखाये हुए पाठ पर विश्वास न रखे तो उसका शिक्षण वहीं ठप्प हो जायेगा।
युवावस्था में पदार्पण करते ही उसका जीवन जगत् के साथ जुड़ता है। युवक के समक्ष सभी दिशाएँ खुलती हैं । महाविद्यालय, (कॉलेज) में इंजीनियरी, डॉक्टरी, वकालत या विज्ञान, कैमिस्ट्री, जीवविज्ञान, अथवा अन्य किसी विषय को शिक्षा का कोर्स करना चाहता है। क्या वह अपने मनोनीत विषय के प्रोफेसर पर विश्वास किये बिना उस विषय की शिक्षा प्राप्त कर सकती है या उस विषय में पारंगत हो सकता है ? कदापि नहों। यदि वह उस विषय की कुञ्जी से अपनी ज्ञानवृद्धि करेगा, तो भी उस उसे कुञ्जी पर तो विश्वास रखकर पढ़ना ही होगा। तभी वह उत्तीर्ण हो सकेगा।
अगर वह युवक व्यावसायिक क्षेत्र में निष्णात होना चाहता है तो उस व्यवसाय के किसी जानकार या विश्वस्त व्यक्ति या पिता आदि पर विश्वास रखकर ही उसे अपनी ज्ञानवृद्धि करनी होगी।
व्यापारिक क्षेत्र में अपने माल के आयात-निर्यात के मामले में अथवा बड़े व्यापारी को छोटे व्यापारी को माल उधार देने अथवा छोटे व्यापारी को बड़े व्यापारी से माल खरीदने में विश्वास रखकर ही चलना होता है । बैंकों पर लोग यह विश्वास रखकर अपनी पूजी जमा कराते हैं, कि हमारी पूंजी सुरक्षित रहेगी, समय पर जब चाहें तब मिल सकेगी। इसी प्रकार एक देश का, एक प्रान्त का, दूसरे देश, प्रान्त, जिला या ग्राम
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