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________________ १६ | सद्धा परम दुल्लहा नगरों के साथ विश्वास पर ही सारा कार्य चलता है । अगर विश्वास न रखा जाये तो सारी व्यवस्था ही बिगड़ जायेगी । इस प्रकार मनुष्य की जीवनयात्रा में पद-पद पर विश्वास करना आवश्यक होता है । बिजली चमक रही हो, बादल गरज रहे हों, उस समय कोई व्यक्ति ऐसा संदेह रखे कि आकाश टूट पड़ेगा तो ? या बिजली मेरे सिर पर गिर तो नहीं पड़ेगी ? इस प्रकार की शंका करने से मनुष्य घर से बाहर भी नहीं निकल सकता । कौन ऐसा अविश्वास डॉक्टर के प्रति रखता है कि इस दवा में डॉक्टर ने जहर तो नहीं मिला दिया ? इसी प्रकार 'यह शिक्षक उलटा तो नहीं पढ़ाता ? यह स्त्री पतिव्रता है या नहीं ? बाप-दादा से चलते आये हुए व्यवसाय के विषय में यह शंका करे कि यह व्यवसाय चलेगा या नहीं ? अथबा यह मुनीम नीतिमान है या नहीं ? और इस प्रकार के अविश्वास - पूर्वक जीवन के किसी भी क्षेत्र में मनुष्य क्रिया करें तो वे सदैव शंकित और दुःखित रहा करेंगे, चिन्तातुर और कुढ़न से ग्रस्त होकर वे कभी सुखी नहीं हो सकेंगे। संदेह का कीड़ा जब मनुष्य के मन को कुरेदता रहता है, तब वह निश्चिन्त होकर बैठ नहीं सकता । उसके मन में सतत् अविश्वास का गन्दा नाला बहा करे तो वह व्यक्ति धन-जन से सम्पन्न होने पर भी सुखी नहीं हो सकता । अज्ञात विषय में उसके निष्णात पर विश्वास आवश्यक एक व्यक्ति बीमार है, रोग और उसके निदान तथा चिकित्सा के विषय में उसका ज्ञान बहुत ही नगण्य है, ऐसी स्थति में उसे किसी योग्य चिकित्सक पर विश्वास रखकर अपने शरीर की जाँच कराना, उसे नाड़ी बताना, उसके द्वारा किये गये रोग के निदान को मानना, स्वस्थ होने के लिए उस चिकित्सक द्वारा बताये हुए मार्ग पर विश्वासपूर्वक चलना अनिवार्य है । इस प्रकार रोग विषयक एवं चिकित्साविषयक अज्ञान मनुष्य को डॉक्टर या वैद्य पर विश्वास रखने को प्रेरित करता है। कानून-कायदों से अज्ञात मनुष्य को मुकदमे - मामले के विषय में किसी विधिवेत्ता वकील पर विश्वास करना ही पड़ता है । संगीत के स्वरों का अज्ञान मनुष्यों को संगीतज्ञों पर विश्वास रखने के लिए की प्रेरणा प्रदान करता है । इस प्रकार चिकित्सक, वकील या संगीतज्ञ उस-उस विषय के अनभिज्ञ व्यक्ति के लिए विश्वासपात्र बनते हैं । अगर उपर्युक्त व्यक्तियों पर पूरा विश्वास रखा जाए तभी उस उस विषय से अनभिज्ञ व्यक्ति को उस उस क्षेत्र में लाभ मिल सकता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003188
Book TitleSaddha Param Dullaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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