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सफलता का मूलमंत्र : विश्वास
विश्वास : जीवनयात्रा का पाथेय
हमारी जीवनयात्रा बहुत लम्बी है । पहले शैशवकाल, फिर बाल्यकाल, किशोरावस्था, युवावस्था, प्रौढ़ावस्था और फिर वृद्धावस्था, यों अनेक पड़ाव करती हुई हमारी जीवनयात्रा चलती है। जीवन से मृत्यु तक के बीच में हमें अनेक मंजिलें पार करनी पड़ती हैं। इस प्रकार की लम्बी जीवनयात्रा में हमारा पाथेय होता है--विश्वास । अगर विश्वास हमारे साथ न हो तो हमारी आगे की यात्रा ठप्प हो जायेगी। हम अपनी जीवनयात्रा के प्रत्येक पड़ाव पर संदेह, शंका, अविश्वास, घृणा और भय से घिरे रहेंगे । हमें आगे का मार्ग नहीं मिलेगा । हम शंकाग्रस्त होकर वहीं ठिठक जायेंगे। विश्वास ही हमारा सम्बल है, जो हमें अपनी जीवनयात्रा में आगे बढ़ाता है।
__ मनुष्य जब से जन्म लेता है, तब से शैशवावस्था पार करने तक बिल्कुल अबोध होता है। उस समय वह अबोध शिशू माता पर विश्वास रखता है। माता उसे जो भी कह देती है, जो भी सिखाती है, वह उस पर पूर्ण विश्वास रखता है। उस समय माता उसे जो भी खिलाती-पिलाती है, वह विश्वास रखकर खाता-पीता है। वह उसे जहाँ नहीं जाने को कहती है, वहाँ नहीं जाता। शैशवावस्था में माता जो भी देती है, बच्चा उसे विश्वासपूर्वक ले लेता है।
शैशवावस्था के पश्चात् बाल्यावस्था आती है, उस समय तक बालक
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