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श्रेय का पथ ही श्रेयस्कर | १३
लाख योनियों में लाखों वर्षों तक भ्रमण करने वाली पीड़ाओं से छूट जाता है, तथा भावी पीढ़ी के लिए प्रकाशस्तम्भ बन जाता है।
___ श्रेयमार्ग पर चलने की अर्हताएं श्रेय का मार्ग महान है। जो विवेक और दूरदर्शिता को अपनाए रहता है, प्रलोभनों और भयों से स्खलित नहीं होता, सन्मार्ग से किसी भी मूल्य पर कदम पोछे नहीं हटाता, वास्तव में वही श्रेयपथ का अधिकारी है, वही इस शरीररूपी नैया द्वारा भवसागर को पार कर लेता है, उसी का मानव-शरीर धारण करना सार्थक है। श्रेयमार्ग का पथिक बनने के लिए सर्वप्रथम लक्ष्य की ओर दृष्टि रखना आवश्यक है । वह दूरदर्शी बनकर विवेक से काम ले। आज का कार्य करने से पूर्व कल की सम्भावनाओं का ध्यान रखे । वही करे जो करने योग्य है, वही सोचे जो श्रेय के लिए विचारणीय है, उसे ही अपनाये जो उचित जचे। अनुचित, अकरणीय एवं अनाचरणीय से तुरन्त अलग हो जाये। अनीति-अन्याय के मार्ग पर दिखाई देने वाले प्रलोभनों की ओर दौड़ने वाले मन को कड़ी लगाम लगाकर रोकने की वीरता दिखाये। आज नीरस या कठिन दीखने वाले कार्य या मार्ग को भविष्य की उज्ज्वल आशाओं तथा आत्मिक विकास को ध्यान में रखते हुए अपनाने का साहस दिखाए । ऐसे श्रेयमार्गी दूरदर्शी सबके हित में अपना हित और सबके सूख में अपना सुख समझते हैं । संकुचित लाभ या संकुचित स्वार्थ की उनकी दृष्टि नहीं होती। दसरों की सुख-शान्ति के लिए वे अपना सर्वस्व त्याग करने को तैयार होते हैं । दूसरों को जिलाकर जीने का महामन्त्र उनकी रग-रग में भरा रहता है।
श्रेय मार्ग पर चलने वालों की कसौटी भी होती है । चोरी, बेईमानी आदि करके अपने व्यक्तित्व की प्रतिष्ठा बेचकर छोटा-सा लाभ प्राप्त करने वाले प्रेयमागियों को अपेक्षा श्रेयमार्गी को बहुत कम क्लेश एवं कष्ट प्राप्त होता है । पुण्य, परमार्थ, श्रेष्ठता ओर महानता क तथा आस्तिकता और धार्मिकता के श्रेयपथ पर चलना तथा निरन्तर प्राप्त होने वाली शांति को उपलब्ध करना कोई कष्टसाध्य नहीं है, बशर्ते कि मनुष्य तात्कालिक लोभ को त्यागकर दूरवर्ती परिणामों पर विचार करे और उसी के आधार पर गति-प्रगति करने के लिए कृतसंकल्प एवं कटिबद्ध हो जाये। अतः प्रेय और श्रेय दोनों मार्गों में से श्रेयमार्ग को अपनाना ही श्रेयस्कर है
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