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श्रेय का पथ ही श्रेयस्कर ७
पैदा करती है। जिह्वन्द्रिय के विषय-सेवन के क्षणिक लोभ में पड़कर इहलौकिक अगणित समस्याएँ पैदा करने वाले प्रेयमार्गी की तुलना में जिसने जिह्वन्द्रिय पर संयम करके अपने तन-मन को स्वस्थ रखा है, उस श्रेयमार्गी की समस्याएँ बहुत ही कम होती हैं। इसी प्रकार कामेन्द्रिय (स्पर्शेन्द्रिय) की वासना-पूर्ति के क्षणिक सुख में आसक्त होकर जो अपने जीवन-रस को निचोड़ डालते हैं, उन्हें असमय में ही बुढ़ापा आ घेरता है, शरीर रोगों का घर बन जाता है; आँख, नाक, कान, जीभ, हाथ-पैर आदि सभी इन्द्रियाँ जबाब देने लगती हैं। प्रायः असमय में ही मौत सामने आ धमकती है। जितने बच्चों का उत्तरदायित्व वह नहीं उठा सकता, उतने बच्चे पैदा हो जाते हैं। फिर उनके खाने-पीने, पहनने-रहने और मौज-शौक पूरे करने की तथा बीमारी, पढ़ाई, शादी आदि की समस्याएँ सामने आती हैं । उन्हें रोजगार-धन्धे से भी लगाना पड़ता है। कोई लड़का अयोग्य या कुपात्र निकला तो नई उलझनें आ पड़ती हैं। पत्नी भी यदि सुलक्षणी और सुपात्र न हुई तो दुगुणी, कर्कशा एवं क्रोधी पत्नी को लेकर नित नई समस्या उत्पन्न हो जाती है। ऐसे प्रेयमार्गी को शरीर की वासनाएँ भोग के समय अत्यन्त प्रिय लगती हैं, परन्तु उनका परिपाक इतना भयंकर होता है कि संभाले नहीं सँभलता।
इसी प्रकार मन की तृष्णा को शान्त करने में सुख मानने वाला प्रेयमार्गी अर्थलोलुप बनकर अन्याय-अनीति, अधर्म एवं पाप को अपनाकर येन-केन-प्रकारेण धन कमाता है, भवन, वाहन, उद्यान तथा अन्य सुख-साधन जुटाता है । इस प्रकार धन-वैभव और अर्थ-लोभ के प्रवाह में बहकर वह केवल शरीर और शरीर से सम्बन्धित परिवार आदि की चिन्ता में ही अपना सारा जीवन खपा देता है। यद्यपि अपनी और अपने आश्रित परिवार की ठोक प्रकार से गुजर-बसर करने लायक धनप्राप्ति से उसे सन्तोष कर लेना चाहिए था, किन्तु प्रेयमार्गी ऐसा नहीं करता, वह दूरदर्शिता से सोच भी नहीं पाता है। वास्तव में प्रेयार्थी केवल शरीर तक ही सोच पाता है, दूरदर्शी बनकर आत्मा के विषय में बह सोच ही नहीं पाता । होना यह चाहिए था कि वह अपने कुटुम्ब के निर्वाह के योग्य धन न्याय-नीति से अजित करने के साथ ही बचा हआ समय आत्मचिन्तन में, परमार्थ में, आत्मकल्याण में लगाता, परन्तु प्रेयार्थी के मन-मस्तिष्क में, ऐसा सुबोध आता ही नहीं, न ही वह ऐसा सुबोध प्राप्त करने अथवा उसे क्रियान्वित करने की परवाह करता है। अपनी मानसिक तृष्णा की पूर्ति के लिए वह हजार से
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