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१२६ | सद्धा परम दुल्लहा
ध्यान रखना आवश्यक है। अन्यथा देवरूप आदर्श, निर्ग्रन्थगुरु रूप मार्गदर्शक एवं अहिंसादिमय सद्धर्म के प्रति अनन्यश्रद्धा-भक्ति, निष्ठा रहनी कठिन है। इसी बात की जागृति के लिए ६ प्रकार का यत्नाचार रखना जरूरी है । इनका आशय यह है कि (१) देवबुद्धि तथा गुरुबुद्धि से मिथ्यादृष्टिसम्पन्न देव तथा गुरु की वन्दना या स्तुति (गुणगान) न करे, (२) देव या गुरुबुद्धि से नमस्कार न करे, (३) धर्मबुद्धि या गुरुबुद्धि से अन्यतीथिक गुरु को दान न दे। अनुकम्पाबुद्धि से पीडित, संकटग्रस्त आदि को दान देने का जनशास्त्रों में कतई निषेध नहीं है। (४) अन्यतैर्थिक गुरुओं का गुरुबुद्धि से सत्कार, सम्मान या बहुमान या आसनादि प्रदान (अनुप्रदान) न करे तथा (५) उनके बिना बुलाये एक बार भी सम्भाषण (आलाप) न करे, (६) न ही बार-बार सम्भाषण (आलाप) करे । वास्तव में ये यतनाएँ कच्चे सम्यक्त्वसाधकों के लिए अनन्यश्रद्धा को लक्ष्य में रखकर बताई गई हैं।
(१०) छह आगार-बहुत से लोग सम्यक्त्व ग्रहण करने के पश्चात् अर्थलोलुपता, शंका, साधारण भय, प्रलोभन या भ्रान्ति के शिकार होकर सम्यक्श्रद्धा से विचलित होकर कुदेव, कुगुरु एवं कुधर्म की ओर झुक जाते हैं । प्रारम्भ में वे देखादेखी या किसी स्वार्थवश अपनी सूश्रद्धा से विचलित होते हैं, किन्तु बाद में वे उनके कट्टर अनुयायी, भक्त या पूजक बन जाते हैं। परन्तु जो जागरूक, दृढ़धर्मी, सम्यग्दृष्टि होते हैं, वे सच्चे देव (आदर्श) गुरु (मार्गदर्शक) एवं धर्म (मोक्षमार्ग) से कदापि विचलित नहीं होते, वे पूर्वोक्त ६ यतनाओं का बराबर ध्यान रखते हैं। किन्तु सभी गृहस्थों की, सदा-सर्वदा एक-सी परिस्थिति और क्षमता नहीं होती। उन्हें गृहस्थजीवन में रहते हुए आजीविका, सुख-शांति, सुरक्षा एवं कुटुम्बपालन आदि कई आवश्यक कार्य करने पड़ते हैं । इसलिए आचार्यों ने सम्यक्त्वी के बाह्य व्यवहार की दृष्टि से ६ आगार बताए हैं
(१) रायाभिओगेणं, (२) गणाभिओगेणं, (३) बलाभिओगेणं (४) देवाभिओगेणं, (५) गुरुनिग्गहेणं, (६) वित्तीकंतारेणं । अभियोग का अर्थ है-बलप्रयोग, दवाब या विवशता को स्थिति । आगार छूट को कहते हैं। पर वह छूट जरा-जरा-सी बात में या शासक, समूह आदि को खुश रखने, कोई आग्रह या दवाब न होने पर भी उनसे अपना स्वार्थ सिद्ध करने, पदप्रतिष्ठा या तरक्की पाने हेतु या देखादेखी मुलाहिजे में आकर इन आगारों का सेवन करना, सम्यक्श्रद्धा से विचलित होना है, अपने सम्यक्त्व को
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